नई दिल्ली: गुजाराभत्ते के एक मामले में अदालत ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। अदालत ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की कमाई पर सिर्फ उसकी पत्नी या बच्चों का हक नहीं होता है, बल्कि बुजुर्ग माता-पिता भी उसकी आय के हिस्सेदार होते हैं।
इस तरह अदालत ने साफ किया कि पत्नी व बेटे के बराबर ही किसी भी व्यक्ति पर उसके माता-पिता का अधिकार होता है।
तीस हजारी स्थित प्रिंसिपल जिला एवं सत्र न्यायाधीश गिरीष कथपालिया की अदालत ने इस मामले में वादी महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रतिवादी पति से आय संबंधी हलफनामा पेश करने को कहा था।
महिला का कहना था कि उसके पति की मासिक आय 50 हजार रुपये से ज्यादा है। जबकि उसे व उसके बच्चे को महज दस हजार रुपये गुजाराभत्ता दिया जा रहा है।
पति द्वारा पेश हलफनामे में कहा गया कि उसकी मासिक आय 37 हजार रुपये है और इसी रकम में से पत्नी व दो साल के बेटे की परवरिश के अलावा खुद का खर्च और बुजुर्ग माता-पिता की गुजर-बसर भी करनी होती है।
अदालत ने पति के हलफनामे के बाबत सुरक्षा अधिकारी को रिपोर्ट पेश करने को कहा था। अधिकारी ने रिपोर्ट में बताया कि प्रतिवादी ने सही तथ्य पेश किए हैं।
उसका आयकर खाते के मुताबिक, उसकी मासिक आय 37 हजार रुपये ही है। साथ ही रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि माता-पिता के जीवन-यापन के अलावा उनकी बीमारी का खर्च भी प्रतिवादी ही उठाता है।
अदालत ने इस तथ्य को गंभीरता से लिया। हालांकि पत्नी का कहना था कि पति की ज्यादा जिम्मेदारी उसके व उसके बच्चे के प्रति ही बनती है। इसलिए उसका गुजाराभत्ता बढ़वाया जाए।
अदालत ने इस मामले का निपटारा करते हुए प्रतिवादी पति की तनख्वाह को छह हिस्सों में बांटा। दो हिस्से प्रतिवादी को दिए। इसके अलावा पत्नी, बेटे, माता व पिता को एक-एक हिस्सा दिया।
अदालत ने इस मामले में पत्नी की पति की आय के हिसाब से गुजाराभत्ता बढ़ाने की याचिका का निपटारा करते हुए यह निर्णय किया है। अदालत ने कहा कि पत्नी व बेटे का हिस्सा 12 हजार पांच सौ रुपये बैठता है।
इसलिए पति को अब प्रतिमाह की दस तारीख को अपनी पत्नी व बेटे को गुजाराभत्ता रकम का भुगतान करना है।
अदालत ने अपने निर्णय को एक उदाहरण की तरह पेश करते हुए कहा कि परिवार के कमाने वाले सदस्य की मासिक आय एक फैमिली केक की तरह होती है।
जिसे बराबर हिस्से में बांटकर खाया जाता है। इसी तरह आय का भी बंटवारा होता है।