नई दिल्ली: भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद सीसीआईएम की ओर से आयुर्वेद से स्नातकोत्तर (मास्टर डिग्री) की पढ़ाई करने वाले डॉक्टरों को सर्जरी करने की अनुमति देने वाले आदेश के खिलाफ आईएमए की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की पीठ ने आयुष मंत्रालय, सीसीआईएम और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
आईएमए ने न्यायालय में अपील कर आयुर्वेद के डॉक्टरों को सर्जरी करने की अनुमति देने वाले संशोधनों/नियमों को खारिज या रद्द करने का आग्रह किया है।
उसने घोषणा की है कि आयोग को पाठ्यक्रम में एलोपैथी को शामिल करने का अधिकार नहीं है।
आईएमए की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने दलील दी कि आयुर्वेद डॉक्टरों को यदि बिना किसी प्रशिक्षण के सर्जरी करने की अनुमति दी जाती है तो यह कहर पैदा कर देगा।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जिस चिंता का इजहार किया गया है, वह एक चिंता का विषय है, जो बहुत लंबे समय से चली आ रही है।
हम इसका जवाब देंगे। सीसीआईएम की अधिसूचना के तहत, भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (आयुर्वेद शिक्षा स्नात्कोत्तर) नियम, 2016 में संशोधन करके 39 सामान्य सर्जरी और आंख, कान, नाक व गले से जुड़ी 19 तरह की सर्जरी को सूची में शामिल किया गया है।
याचिका में दी गई दलीलों में कहा गया है कि संसद की ओर से घोषित विधायी नियमों के विपरीत, विधायी नीति के विपरीत, यह स्पष्ट रूप से मनमाना और अनुचित भी है, जिसके परिणामस्वरूप देश के नागरिकों के प्रभावी चिकित्सा देखभाल और उपचार के संवैधानिक व मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन तथा पूर्वाग्रह होता है।
यह नियम देशभर के उन लाखों डॉक्टरों के अधिकारों के लिए गंभीर पूर्वाग्रह पैदा करता है, जिन्होंने चिकित्सा की आधुनिक वैज्ञानिक प्रणाली के तहत सर्जरी करने के लिए पर्याप्त जोखिम, अनुभव और योग्यता प्राप्त करने को जीवन के कई वर्ष कठिन परिश्रम व प्रशिक्षण में बिताए हैं।