नई दिल्ली : Railway ने रविवार को कहा कि ओडिशा (Odisha) के बालासोर जिले में दुर्घटना की शिकार हुई कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन (Coromandel Express Train) की “रफ्तार निर्धारित गति से तेज नहीं थी” और उसे ‘लूप लाइन’ (Loop Line) में दाखिल होने के लिए ‘ग्रीन सिग्नल’ मिला था।
रेलवे के इस बयान को ट्रेन चालक के लिए एक तरह से ‘क्लीन चिट’ के तौर पर देखा जा रहा है।
रेलवे बोर्ड (Railway Board) के दो प्रमुख अधिकारियों Signal संबंधी प्रधान कार्यकारी निदेशक संदीप माथुर और संचालन सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने बताया कि दुर्घटना किस तरह हुई होगी।
उन्होंने ‘इंटरलॉकिंग सिस्टम (Interlocking System)’ के कामकाज के बारे में बताया।
कोरोमंडल एक्सप्रेस की दिशा, मार्ग और सिग्नल तय
सिन्हा ने कहा कि Coromandel Express की दिशा, मार्ग और सिग्नल तय कर दिए गए हैं।
उन्होंने कहा, “ग्रीन सिग्नल (Green Signal) का मतलब है कि हर तरह से चालक जानता है कि उसका आगे का रास्ता साफ है और वह निर्धारित अधिकतम गति से ट्रेन चला सकता है। इस खंड पर निर्धारित गति 130 किलोमीटर प्रति घंटा थी और वह 128 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से अपनी ट्रेन चला रहा था। हमने लोको लॉग (Loco Log) से इसकी पुष्टि की है।”
बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस (Bangalore – Howrah Superfast Express), शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस (Shalimar – Chennai Central Coromandel Express) और एक मालगाड़ी शुक्रवार शाम लगभग 7 बजे ओडिशा के बालासोर में बाहानगा बाजार स्टेशन के निकट आपस में भिड़ गई थीं।
बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन 126 किमी प्रति घंटे की रफ्तार
अधिकारियों ने कहा कि बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन (Bangalore-Howrah Superfast Express Train) 126 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रही थी।
सिन्हा ने कहा, “दोनों रेलगाड़ियों की रफ्तार निर्धारित गति से तेज होने का कोई सवाल ही नहीं है।’’
उन्होंने कहा, “दुर्घटना केवल एक ट्रेन के कारण हुई, वह कोरोमंडल एक्सप्रेस थी। कोरोमंडल एक्सप्रेस मालगाड़ी से टकरा गई और उसके डिब्बे मालगाड़ी के ऊपर चढ़ गए। यह ट्रेन लौह अयस्क से लदी हुई थी।”
दुर्घटना का संभावित कारण बताते हुए कहा
माथुर ने दुर्घटना का संभावित कारण बताते हुए कहा कि अगर ट्रेन को ‘लूप लाइन’ पर ले जाना होता है तो ‘प्वाइंट मशीन’ को संचालित करना होता है।
उन्होंने कहा, “हमें यह देखना होगा कि आगे का ट्रैक खाली था या नहीं। सिग्नल को इस तरह से इंटरलॉक किया जाता है कि यह पता चल सके लाइन पर आगे कुछ है या नहीं। यह भी पता चल जाता है कि प्वाइंट मशीन ट्रेन को सीधे ले जा रही है या ‘लूप लाइन’ की ओर।”