नई दिल्ली: मोदी सरनेम (Modi Surname) को लेकर मानहानि केस (Defamation Case) में 23 मार्च को गुजरात में सूरत के स्थानीय कोर्ट (Surat Local Court) ने कांग्रेस नेता (Congress Leader) और केरल (Kerala) के वायनाड संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधि राहुल गांधी को 2 साल जेल की सजा सुनाई।
ध्यान रहे, इस कानून में यह अधिकतम सजा (Maximum Sentence) का प्रावधान (Provision) है। राहुल को इधर सजा सुनाई गई और उधर 24 घंटे के भीतर संसद सदस्यता छीन ली गई।
कानून (Law) की दृष्टि से सजा पर सवाल तत्काल नहीं उठाया जा सकता है। इसके कई प्लस- माइनस कानूनी पहलू है, लेकिन लोकसभा (Lok Sabha) ने जिस बिजली की चाल से संसद सदस्यता खत्म की, उसे लेकर सियासत में बवंडर सा मच गया है।
राहुल गांधी के प्रति लंबी रणनीति के तहत लिया गया है यह एक्शन
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act) के मुताबिक, यदि संसद या विधानसभा के किसी सदस्य को आपराधिक मामले (Criminal Cases) में दो साल या उससे अधिक की सजा सुनाई जाती है, तो उसकी सदस्यता समाप्त की जा सकती है।
इस नियम के अनुसार लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat) के कदम को सही कहा जा सकता है।
यह भी ध्यान देने की बात है कि इस प्रावधान में 2 साल की सजा काटने के बाद 6 साल तक चुनाव (Election) नहीं लड़ा जा सकता है यानी यदि सजा पर ऊपरी अदालत की ओर से कोई हस्तक्षेप (Interference) नहीं हुआ तो अब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। न साल 2024 में, न साल 2029 में।
पूरा विपक्ष आ गया है सकते में
बता दें कि सूरत की अदालत (Surat Court) ने फैसला सुनाने के साथ राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को एक महीने की मोहलत भी दी थी कि इस बीच उन्हें गिरफ्तार (Arrest) नहीं किया जाएगा और वे इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकते हैं।
मगर, लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat) ने एक दिन की मोहलत देना भी मुनासिब नहीं समझा। ऐसे में Congress समेत सभी विपक्षी दलों को सरकार पर नए सिरे से आरोप लगाने का एक और मौका मिल गया है।
कैसे नजरअंदाज की जा सकती है यह हकीकत
भले सत्तापक्ष यह कह रहा हो कि Rahul Gandhi को सजा अदालत ने सुनाई है और उनकी सदस्यता नियम (Membership Rules) के मुताबिक समाप्त की गई है, फिर भी उस पर बदले की भावना से काम करने का आरोप लगना स्वाभाविक है।
ऐसा इसलिए कि सत्तापक्ष (Ruling Party) के नेता उसी समय से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की सदस्यता समाप्त करने की मांग कर रहे थे, जब उन्होंने लंदन में भाषण दिया था।
इस तरह उनकी सदस्यता जाने से सत्तापक्ष को कितना नफा-नुकसान (Profit and Loss) होगा, यह तो समय बताएगा, मगर राजनीतिक मर्यादा की रेखा तो उसके सामने भी खिंच गई है।
अब इस मुद्दे को विपक्ष (Opposition) एकजुट होकर आगे किस रूप में बढ़ाता है,यह देखने लायक है। जनता की अदालत में अंततः यह मामला जाएगा, तभी अंतिम परिणाम पर मुहर लगेगी।