तिरुवनंतपुरम: केरल के वित्त मंत्री के.एन. बालगोपाल 11 मार्च को पेश किये जाने वाले अपने पहले पूर्ण बजट को जब अंतिम रूप दे रहे हैं तब चिंता का सबसे बड़ा कारण राज्य का बढ़ता बकाया ऋण है, जो 2021-22 के बजट के अनुसार इस वित्त वर्ष के अंत तक 3.27 लाख करोड़ रुपये हो जायेगा।
बकाया ऋण सार्वजनिक ऋण का कुल योग है, जिसमें आंतरिक ऋण, केंद्र से प्राप्त ऋण और अग्रिम शामिल हैं।
इसके अलावा एलआईसी जैसे वित्तीय संस्थानों से प्राप्त ऋण और विशेष प्रतिभूतियां तथा राज्य भविष्य निधि, कोष, पेंशन फंड और बीमा में जमा से उधार भी शामिल है।
केरल की वित्तीय तस्वीर कभी भी गुलाबी नहीं थी और कोविड महामारी के कारण दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह इसे भी एक गंभीर झटका लगा, जिससे नगद की कमी वाली स्थिति और गंभीर हो गयी है।
ऋण की स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करने के लिये, इसे राज्य की अर्थव्यवस्था/ सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के आकार के अनुपात के रूप में सबसे बेहतर समझा जा सकता है।
वर्ष 2022 में उच्चतम ऋण जीएसडीपी अनुपात वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की राष्ट्रीय तस्वीर की तुलना के अनुसार, अरुणाचल प्रदेश में इसकी दर 57.4 प्रतिशत, कश्मीर 56.6, पंजाब 53.3, नागालैंड 44.2, हिमाचल प्रदेश 43.4, राजस्थान 39.8, मेघालय 39.2, पश्चिम बंगाल 38.8, केरल 38.3 और आंध्र प्रदेश 37.6 प्रतिशत है।
एक बात जो ध्यान देने योग्य है, वह यह है कि केरल के बकाया ऋणों का वर्तमान चौंका देने वाला आंकड़ा रातोंरात नहीं तैयार हुआ है।
इसके लिये एक निश्चित सीमा तक राज्य की सरकारें शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में राज्य की उपलब्धियों का श्रेय ले सकती हैं।
इसके कारण ही केरल इन क्षेत्रों में देश का नेतृत्व करता है। यहां तक पहुंचने के लिये निवेश की जरूरत थी लेकिन पूरी स्थिति के बारे में गहराई से देखने पर विशेषज्ञों ने वास्तविक स्थिति का खुलासा किया है।
गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड टैक्सेशन (गिफ्ट) के तिरुवनंतपुरम स्थित मुख्यालय के निदेशक के जे जोसेफ ने कहा कि कोविड महामारी के बाद दुनिया भर के देशों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।
पहली श्रेणी में, ऐसे देश हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था वी आकार की रिकवरी दर्ज करने में कामयाब रही यानी वे कोविड पूर्व स्थिति में पहुंच गये और दूसरे समूह में ऐसे देश हैं, जिनके लिये महामारी से पूर्व की स्थिति को हासिल करना अब भी एक दूर का सपना है।
जोसेफ का संस्थान उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में परिकल्पित है। यह अनुसंधान, प्रशिक्षण और परामर्श में विशेषज्ञता हासिल किये हुये है और विशेष रूप से केरल सरकार और सामान्य रूप से दक्षिण भारतीय राज्यों को वित्तीय और सामाजिक नीति सलाह प्रदान करता है।
वह आगे बताते हैं कि साथ ही, केरल देश में सबसे ज्यादा कर्जदार राज्य नहीं है और हमारे राज्य की तुलना में कुल राजस्व में ब्याज का अनुपात अधिक होने वाले कम से कम चार राज्य हैं।
उन्होंने कहा कि विश्लेषणात्मक रूप से महामारी जैसी परिस्थितियां ऐसी स्थितियां हैं, जहां राज्य को आगे आने की जरूरत होती है जैसा कि महामारी के दौरान विकसित देशों में हुआ है और कर्ज के बोझ का डर तब तक उधार लेने में बाधक नहीं होगा जब तक हम गुणवत्ता खर्च सुनिश्चित करते हैं।
वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्यारेलाल राघवन ने कहा कि आय और व्यय को संतुलित करने के लिये भारी उधारी केंद्र और राज्य सरकार दोनों के बजट की एक महत्वपूर्ण विशेषता रही है।
राघवन ने कहा, इसके कारण कर्ज बोझ बढ़ता रहा है, जिसने ब्याज और मूलधन के पुनर्भुगतान में वृद्धि की है।
वर्ष 2021-22 के लिए आरबीआई द्वारा किये गए हालिया अनुमानों से पता चलता है कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की कुल ऋण या बकाया देनदारियां 69.47 लाख करोड़ रुपये हैं, जो सकल घरेलू उत्पाद का 31.2 प्रतिशत हैं। इसके विपरीत केंद्र सरकार का ऋण जीडीपी अनुपात 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद का 59.3 प्रतिशत था।
उन्होंने कहा कि ब्याज का बोझ राज्यों की राजस्व प्राप्तियों से चुकाया जाना है, ब्याज भुगतान का बोझ आमतौर पर राज्यों की राजस्व प्राप्तियों के हिस्से के रूप में अनुमानित किया जाता है।
राघवन ने कहा, जब मीडिया अत्यधिक पूर्वाग्रही होकर एक पक्षपाती तस्वीर पेश करता है तो विज्ञापन के लिये सरकारी बजट बढ़ना तय है।
ऐसे परि²श्य में मुख्यमंत्रियों के पास पेड विज्ञापनों का उपयोग करके अपने प्रचार अभियानों को फंड देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। सरकार के सोशल मीडिया विज्ञापन में आने वाले वर्षों में काफी वृद्धि होगी।
चुनावी वादे आकांक्षात्मक नारे हैं जब तक कि राजनीतिक दल एक निश्चित समय सीमा के भीतर सटीक भौतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का वादा नहीं करते हैं।
देश के पहले आईटी पार्क-टेक्नोपार्क के संस्थापक सीईओ रहे केरल के अग्रणी टेक्नोक्रेट जी.विजयराघवन ने आम आदमी के विचारों को व्यक्त करते हुये कहा किबुनियादी ढांचे पर राज्य सरकार का व्यय अधिक रोजगार सृजन करने वाला और आर्थिक विकास को मजबूती देने वाला होना चाहिये तथा फालतू खर्च में कटौती की जानी चाहिये।
उन्होंने कहा, स्वास्थ्य और शिक्षा में केरल के लिये नीति आयोग की रेटिंग देश के बाकी हिस्सों की तुलना में है और यहां की सरकारें इसका श्रेय ले सकती हैं।
लेकिन कई लोग पूछते रहते हैं कि क्या राज्य का स्वास्थ्य क्षेत्र सबसे अच्छा है, तो फिर राजनीतिक और अन्य क्षेत्रों के लोग इलाज के लिए विदेश जा रहे हैं।
इसी तरह, आज केरल से अधिकाधिक छात्र पढ़ाई के लिये बाहर जा रहे हैं और यह सब आत्मविश्वास की कमी को दर्शाता है।
वह आगे बताते हैं कि समय की आवश्यकता गुणवत्तापूर्ण खर्च है ताकि गुणवत्तापूर्ण सुविधायें बनायी जाये और फिजूलखर्ची को रोका जाये।
विजयराघवन ने कहा, ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं, जहां राजनीतिक नेतृत्व एक साहसिक कदम उठा सकता है। राज्य द्वारा संचालित निगमों के काम को दोबारा देखा जा सकता है।
कुछ संगठन एक ही काम कर रहे हैं या लगभग एक ही काम कर रहे हैं और ऐसी चीजों को रोक दिया जाना चाहिये ताकि खर्च कम किया जा सके। दूसरी बात यह है कि कुछ श्रम बोर्ड हैं और इन्हें बनाये रखने को खर्च वास्तव में जितना वे देते हैं उससे अधिक है।
इस विषय पर एक राजनीतिक पक्ष सामने रखते हुये विपक्ष के नेता वी.डी. सतीसन ने कहा कि राज्य वित्तीय संकट में है, जिसका मुख्य कारण पिछली एलडीएफ सरकार (पहली पिनाराई विजयन सरकार 2016-21) का घोर कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार के साथ-साथ केंद्र सरकार का केरल के प्रति पक्षपाती रवैया है।
उन्होंने कहा, राज्य में प्रति व्यक्ति ऋण एक लाख रुपये है, जिसका अर्थ है कि राज्य में पैदा हुआ प्रत्येक बच्चा एक लाख रुपये के कर्ज के बोझ के साथ पैदा हुआ है।
हालांकि, राज्य को अपने कर राजस्व संग्रह के मामले में जीएसटी के कार्यान्वयन से काफी लाभ की उम्मीद थी लेकिन घोर कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार ने राज्य को साल-दर-साल जीएसटी के लिये केंद्र सरकार पर निर्भर रहने के लिए मजबूर किया है। इसके अलावा, राज्य केआईआईएफबी के अधिक ब्याज वाले वाले कर्ज से परेशान है।
उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकार के प्रति केंद्र सरकार के तीखे रवैये ने पहले से ही खाली कोष वाले इस राज्य पर वित्तीय बोझ बढ़ा दिया है।
15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के हिस्से के रूप में केरल को केंद्रीय हस्तांतरण काफी कम कर दिया गया है।
यह हस्तांतरण 10वें वित्त आयोग के 3.5 प्रतिशत से घटकर अब 1.94 प्रतिशत हो गया है।