इस्लामाबाद: इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान सरकार ने सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स, ब्लॉगर्स और पत्रकारों को अधिकारियों, राज्य संस्थानों और सैन्य प्रतिष्ठान के खिलाफ फर्जी खबरें फैलाने से रोकने के लिए एक अध्यादेश पेश किया है।
इलेक्ट्रॉनिक अपराध निवारण अध्यादेश 2022 के तहत प्रेसिडेंशियल ऑर्डिनेंस के माध्यम से, जो कोई भी फर्जी समाचार फैलाता है या राज्य संस्थानों की आलोचना करता है, उसे जमानत तक सीमित पहुंच के साथ तीन से पांच साल तक की जेल हो सकती है।
कानून मंत्री फारूघ नसीम ने इस कदम को साइबर अपराध पर कानूनों में महत्वपूर्ण और आवश्यक संशोधन के रूप में घोषित किया, जिसमें कहा गया कि किसी को भी फर्जी खबरों के खतरे को खत्म करने के प्रयास से छूट नहीं दी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, मीडिया आलोचना करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन कोई फेक न्यूज नहीं होनी चाहिए। मंत्री ने कहा कि फर्जी खबर फैलाना गैर-जमानती अपराध होगा और छह महीने तक की कैद होगी।
सरकार के इस कदम को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है और इस कदम को खतरनाक अतिक्रमण और अलोकतांत्रिक घोषित किया गया है।
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) ने प्रेसिडेंशियल ऑर्डिनेंस के माध्यम से थोपे गए कानून को अलोकतांत्रिक कहा।
एक बयान में, एचआरसीपी ने सरकार और राष्ट्रीय संस्थानों के प्रदर्शन पर बहुत जरूरी आलोचना को चुप कराने के सरकार के प्रयास की निंदा की।
इसने आलोचना करते हुए कहा, यह अनिवार्य रूप से सरकार और राष्ट्रीय संस्थानों के असंतुष्टों और आलोचकों पर नकेल कसने के लिए भी इस्तेमाल किया जाएगा।
निर्णय को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ एक जानबूझकर हमले के रूप में भी चिह्न्ति किया जा रहा है, जो हर व्यक्ति का मूल अधिकार है।
विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी प्रेसिडेंशियल ऑर्डिनेंस का उपयोग करने के लिए सरकार पर सवाल उठाया है और नए अध्यादेश को कठोर करार दिया है।
विपक्षी राजनीतिक दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के एक वरिष्ठ नेता सीनेटर शेरी रहमान ने कहा, संशोधन साइबर शिकार से कमजोर लोगों की रक्षा करने के बारे में नहीं है, बल्कि यह तो इसके बिल्कुल विपरीत है।
सरकार ने हाल ही में विश्लेषकों, पत्रकारों, सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स और विपक्षी दलों की कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।
इसलिए सरकार के इस कदम से नीति निर्माण में सरकार की क्षमताओं और योग्यता पर सवाल उठाया जा रहा है।
इसके अलावा, देश के शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान भी कई बार सरकार का समर्थन करने को लेकर आलोचना के घेरे में आ चुके हैं।
भले ही देश को सरकार की विफल नीतियों और प्रधानमंत्री खान के झूठे वादों के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हो, मगर अब दिक्कतों से निजात पाने के बजाय आम लोगों की आवाज को दबाने के लिए इस कदम का उपयोग करने की बात कही जा रही है।
वहीं इस बात पर भी जोर दिया जा रहा है कि नवीनतम अध्यादेश निश्चित रूप से संस्थागत ताकत को मजबूत करेगा, साथ ही कुछ तत्वों द्वारा की गई व्यापक आलोचना और मानहानि से भी सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, जो कभी-कभी फर्जी समाचारों को सूचना के विश्वसनीय स्रोत के रूप में उपयोग करते हैं।