पाली: मेवाड़ और मारवाड़ में टाइगर की गूंज और यहां के पर्यटन क्षेत्र के लिए बड़ी खुशखबरी है।
केंद्र की उच्चस्तरीय कमेटी ने दो माह के सर्वे के बाद कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व पर मुहर लगा दी है। यह उदयपुर, पाली, राजसमंद और सिरोही जिले की धरती पर आकार लेगा।
केंद्र की उच्चस्तरीय कमेटी ने पर्यावरण मंत्रालय को इसकी गोपनीय रिपोर्ट भेज दी है। इस रिपोर्ट में चारों जिलों के 2053 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में टाइगर रिजर्व बनाने की बात कही गई है।
इसमें रावली टॉडगढ़ की पतली पट्टी व खड़े स्लॉप के जंगली एरिया को अलग रखकर कुछ बाहरी एरिया को शामिल किया गया है क्योंकि, कुंभलगढ़ के क्षेत्र में बड़े और खड़े स्लॉप टाइगर के बजाय लेपर्ड के लिए ज्यादा अनुकूल माने गए हैं।
बाहरी एरिया में 1150 वर्ग किलोमीटर का टेरिटोरियल फॉरेस्ट और वेस्ट लैंड है, जिसे वाइल्ड लाइफ रिजर्व में शामिल करना होगा।
वाइल्ड लाइफ के चीफ कंजरवेटर राहुल भटनागर में पाली जिले के फालना में आयोजित जिलास्तरीय इन्वेस्ट समिट में हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में संकेत दिए हैं कि केन्द्र सरकार जनवरी में कुंभलगढ़ को टाइगर रिजर्व बनाने के संबंध में नोटिफिकेशन जारी कर सकती है।
उन्होंने बताया कि कुल 2053 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में राजसमंद का 516, पाली जिले का 790, उदयपुर का 681 एवं सिरोही जिले का 66 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शामिल किया जाएगा।
भटनागर का मानना है कि पिछले दिनों सर्वे के लिए आई केंद्र की उच्चस्तरीय कमेटी ने कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य को हर तरह से टाइगर रिजर्व के अनुकूल माना है।
कुंभलगढ़ सेंचुरी को टाइगर रिजर्व बनाने की दिशा में बनी एक्सपर्ट कमेटी में रिटायर्ड पीसीसीएफ राजस्थान आरएन मेहरोत्रा, रिटायर्ड पीसीसीएफ असम एनके वासु, टाइगर सेल (वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) के साइंटिस्ट डॉ. कौशिक बनर्जी और आईएन साधु तथा एआईजी (एनटीसीए, रीजनल ऑफिस) हेमंत कामडी शामिल थे।
प्रदेश के पूर्व पीसीसीएफ मेहरोत्रा की भूमिका के अनुसार ही सरिस्का में दोबारा टाइगर रिलोकेट किया गया था, जो देश का पहला सफल प्रयास माना जाता है।
प्रदेश में गुजरे 3 साल में 33 बाघ बढ़े हैं। इनकी संख्या 100 पार पहुंच चुकी हैं। जंगलों में बढ़ते दबाव से 10 साल में 15 लोग मारे गए हैं तथा बाघों में भी संघर्ष बढ़ा है।
राजस्थान में चार टाइगर रिजर्व हैं। इनमें रणथंभौर टाइगर रिजर्व, सरिस्का अभयारण्य, मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व और रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य शामिल हैं।
कुंभलगढ़ के रूप में पांचवा टाइगर रिजर्व प्रदेश को मिलेगा। सारा दबाव रणथंभौर पर है। यहां 70 से अधिक बाघ हैं।
दो चरणों में बनेगा कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व
प्रोजेक्ट के पहले चरण में 1150 वर्ग किलोमीटर भूमि वाइल्ड लाइफ में ट्रांसफर होगी। चार जिलों से 526 वर्ग किलोमीटर फॉरेस्ट एरिया को वाइल्ड लाइफ में ट्रांसफर किया जाएगा।
दूसरे चरण में राज्य सरकार की प्लानिंग पर एनटीसीए की ओर से 2024-25 में टाइगर रीइंट्रोडेक्शन प्लान बनेगा, तब टाइगर छोड़े जाएंगे। शुरुआत में कम से कम एक जोड़ा छोड़ेंगे।
पूरे प्लान के लिए केंद्र से बजट आएगा। अभी रणथंभौर में क्षमता 45 से 50 बाघ की है लेकिन यहां बाघों की संख्या 72 पहुंच गई है। ऐसे में एक टाइगर रिज़र्व की दरकार थी, जिससे देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में सबसे बड़ा टाइगर कॉरिडोर बन जाएगा।
यह सम्भवतः देश का भी सबसे बड़ा टाइगर कॉरिडोर साबित होगा। फिलहाल चारों टाइगर रिज़र्व के कारण सवाई माधोपुर से चित्तौड़ तक टाइगर कनेक्टिविटी हो गई है।
अब कुंभलगढ़ टाइगर रिज़र्व बनने से उदयपुर के राजसमंद से पाली और रावली टॉडगढ़ होते हुए अजमेर और उदयपुर के रणकपुर से सिरोही की माउंट आबू वाइल्डलाइफ सैंचुरी से फिर उदयपुर के फुलवारी की नाल तक टाइगर कॉरिडोर बन जाएगा।
इससे पहले हाड़ौती को मुकुंदरा और रामगढ़ विषधारी के रूप में 2-2 टाइगर रिज़र्व की सौगात मिल चुकी है। हालांकि मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व मॉनिटरिंग में लापरवाही की वजह से यह फेल हो गया था।
कुंभलगढ़ में अभी सफिशियन्ट प्रे बेस
कुंभलगढ़ में अभी सफिशियन्ट प्रे बेस है लेकिन सांभर के साथ चीतल की संख्या खास तौर पर बढ़ानी होगी। कुम्भलगढ़ लेपर्ड प्रूफ फेंसिंग में हरबिवोर एनरिचमेंट एनक्लोजर का काम लगभग पूरा हो चुका है।
इसके साथ ही इनवेसिव वीड रेडिकेशन प्रोग्राम और ग्रासलैंड मैनेजमेंट काम युद्ध स्तर पर ज़ारी है। प्रस्तावित टाइगर रिज़र्व के एरिया को अब बढ़ा दिया गया है, इससे थिन बेल्ट की समस्या से निजात मिलेगी।
कुंभलगढ़ में पहले से पैंथर, भालू, भेड़िया, ज़रख, लोमड़ी, सांभर, चीतल, चौसिंगा मौजूद है। जिस तरह से प्रोजेक्ट आगे बढ़ रहा है, उससे उम्मीद है कि वर्ष 2024 तक कुंभलगढ़ में बाघों की दहाड़ गूंजेगी।
प्रदेश में पांचवें टाइगर रिजर्व के तौर पर कुंभलगढ़ को मंजूरी मिलने से राजस्थान में वाइल्डलाइफ टूरिज्म को नए आयाम मिलेंगे।
इससे बाघों के बीच टेरिटोरियल फाइट रुकेगी, साथ ही टाइगर्स की संख्या संतुलित की जा सकेगी। बाघ और मानव के बीच संघर्ष थम जाएगा और प्रदेश बाघ संरक्षण की दिशा में अग्रणी राज्य के तौर पर शामिल हो सकेगा।