पाकुड़: झारखंड प्रशिक्षित पारा शिक्षक संघ प्रखंड पाकुड़ की ओर से बीडीओ के माध्यम से राज्य के सीएम हेमंत सोरेन का एक खत लिखा गया है।
संघ के अध्यक्ष एब्राहिम आलम व मो सेताबुद्वीन द्वारा लिखे पत्र में झारखंड सरकार से पारा शिक्षकों के मामले में संवेदनशील होने की गुहार लगाई गई है।
कहा गया है कि झारखंड में कार्यरत लगभग 65000 पारा शिक्षकों में स्थायीकरण के सभी मानकों को पूरा करते हैं।
लगभग 20 वर्षों से अधिक का सेवाकालीन कार्य अनुभव है। बिहार से झारखंड बनने के बाद जो सुदूर गांवों, नदी, पहाड़, जंगली भागों में शिक्षा स्तर सुधार के साथ साक्षरता बढ़ा है। इसका सारा श्रेय पारा शिक्षकों को ही जाता है।
साक्षरता स्तर सुधारने में पारा शिक्षकों का अहम रोल
आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक और मध्य विद्यालय की शिक्षा का मुख्य आधार पारा शिक्षक ही हैं।
इसके बावजूद देश के अन्य राज्य की अपेक्षा झारखंड के पारा शिक्षकों की हालत बहुत ही दयनीय बनी हुई है।
कुत्सित राजनीति के शिकार पारा शिक्षक अपने जीवन का स्वर्णिम काल गंवा चुके हैं।
अब ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां से पीछे मुड़ने का कोई रास्ता नहीं बचा है।
कई पारा शिक्षकों को करना पड़ रहा दिहाड़ी मजदूरी
अल्प मानदेय भोगी पारा शिक्षकों की हालात यह हो गई है की अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी इन्हें दिहाड़ी मजदूरी का काम करना पड़ रहा है।
सरकारी उपेक्षा के शिकार पारा शिक्षक गंभीर बीमारी से मौत को गले लगाने लगे हैं।
झारखंड की सरकार यदि पारा शिक्षकों के कल्याणार्थ संवेदनशील होती तो आज पड़ोसी राज्यों बिहार व छत्तीसगढ़ के समान झारखंड में भी न्यूनतम 24000 रुपए मासिक पारिश्रमिक से अधिक राशि प्राप्त कर रहे होते।