पटना: बिहार में शराबबंदी कानून को लागू हुए छह वर्ष हो चुके हैं लेकिन इसका असर नहीं दिख रहा है।
प्रशासन के कुछ दिनों की सख्ती के बाद स्थिति उसी राह पर लौट आती है।
इसे देखते हुए जदयू छोड़कर सभी राजनीतिक दल शराबबंदी कानून और उसके लागू होने के हालात पर फिर से समीक्षा चाहती हैं।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक बीते साल 2021 में जहरीली शराब से कुल 66 लोगों की मौत हो गई थी।
इस साल की शुरुआत में ही नीतीश के गृह जिले नालंदा में 11 लोगों की मौत ने एक बार फिर से इस कानून पर फिर से विमर्श पैदा कर दिया है।
प्रदेश में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को छोड़कर बाकी सभी पार्टियां शराबबंदी कानून की समीक्षा को लेकर एकमत हैं।
उन सभी का कहना है कि गुजरात मॉडल को अपनाने से शराबबंदी कानून बहुत हद तक सफल रहेगा।
बिहार की सत्ता में भागीदार और बड़े भाई की भूमिका निभा रही भाजपा ने नालंदा में 11 लोगों की मौत के बाद नीतीश सरकार के शराबबंदी कानून पर सवाल उठाया है।
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा है कि जिन लोगों की जहरीली शराब पीने से मौत हुई है, क्या उनके पूरे परिवार को जेल भेजा जाएगा।
जायसवाल का आरोप है कि प्रशासन खुद शराब माफिया से मिला है। शराबबंदी से किसको फायदा हो रहा है, यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बताएं। सिर्फ शराब माफिया इसमें गुलजार हो रहे हैं।
जायसवाल का यह भी कहना है कि पटना हाई कोर्ट में 15 जज सिर्फ शराबबंदी पर केस देखते हैं, जिसके कारण बाकी मामले लंबित रहता हैं।
अन्य मामलों में लोगों को न्याय कैसे मिलेगा? उन्होंने मुख्यमंत्री को सुझाव दिया कि शराबबंदी पर अपनी सरकार के घटक दल और विपक्षी पार्टियों के साथ सर्वदलीय बैठक करें।
शराबबंदी पर चर्चा करें और उसके बाद निर्णय लें। यह अब बहुत जरूरी है।
राजद प्रवेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि अब तो भाजपा भी सरकार पर शराबबंदी को लेकर सवाल उठा रही है।
संजय जयसवाल, नीतीश सरकार पर सवाल उठा रहे हैं कि नालंदा में बड़े पैमाने पर शराब मिलती है।
मुख्यमंत्री के गृह जिले में जब शराब मिलती है, तो इसके जिम्मेदार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही हैं।
तिवारी ने कहा कि मुख्यमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए। जब उनके गृह जिले में इस तरह से जहरीली शराब से मौत हो रही है और भाजपा ही मुख्यमंत्री पर आरोप लगा रही है, तो ऐसे में बिहार की जनता को राजग से छुटकारे की जरूरत है।
सरकार में साझीदार हम पार्टी सुप्रीमो और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने इस कानून को लेकर नीतीश कुमार के अड़ियल रवैये पर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा है मुख्यमंत्री को इस बात पर विचार करना चाहिए कि जब प्रधानमंत्री कृषि कानून वापस ले सकते हैं तो बिहार सरकार शराबबंदी कानून वापस क्यों नहीं ले सकती ?
जाप आध्यक्ष पप्पू यादव नालंदा में पीड़ित परिवारों से मिलने पहुंचे। सभी पीड़ित परिवारों को 10-10 हजार रुपये भी दिए।
इस दौरान पप्पू यादव ने नीतीश कुमार पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि बिहार में जनहित के मामले भुला दिए गए हैं। सिर्फ शराब ही बिहार में चर्चा बनी रहती है।
बिहार में वर्ष 2021 में जहरीली शराब पीने के 13 मामले सामने आए। इनमें 66 लोगों की मौत हो गई। अकेले नवंबर महीने में गोपालगंज जिले में 18 और पश्चिम चंपारण के 17 लोगों की जान जहरीली शराब के कारण चली गई।
गोपालगंज के मोहम्मदपुर थाने के कुशहर तुरहा टोला और दलित बस्ती में 20 से अधिक लोगों ने देसी शराब पी थी।
कुछ देर बाद ही उकी तबियत बिगड़ने लगी। पेट में जलन और मुंह से झाग आने के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वहां 10 की मौत हो गई। अगले दिन तक मृतकों की संख्या 18 पहुंच गई थी।
खजुरबानी कांड से हिल गया था बिहार
शराबबंदी कानून लागू होने के कुछ ही महीने बाद गोपालगंज के खजुरबानी की घटना ने कोहराम मचा दिया था। स्वतंत्रता दिवस के दिन 2016 में नगर थाने के खजुरबानी में जहरीली शराब से 19 लोगों की मौत हो गई। 12 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी। इस मामले में कोर्ट ने पहली बार शराब कांड में किसी को मौत की सजा दी। कुल नौ को फांसी और चार को उम्रकैद की सजा दी गई।