नई दिल्ली: धर्मांतरण (Conversion) करके इस्लाम (Islam) और ईसाई (Christian) धर्म अपनाने वाले दलितों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा देकर आरक्षण (Reservation) का फायदा (Benefit) देने की संभावना और उनकी स्थिति की जांच करने के लिए केंद्र (Center) की ओर से गठित जस्टिस केजी बालाकृष्णन आयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका (Petition) दाखिल की गई है।
सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई लंबित
याचिका (Petition) प्रताप बाबुराव पंडित ने दायर की है। याचिका में केंद्र सरकार (Central Government) की ओर से गठित आयोग (Commission) को रद्द करने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि दलितों को ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने के बाद अनुसूचित जाति का दर्जा देने वाले अनुसूचित जाति आदेश 1950 को चुनौती देने वाली याचिकाएं (Petitions) सुप्रीम कोर्ट (SC) मे सुनवाई के लिए लंबित हैं।
याचिका में मांग की है कि इससे संबंधित याचिकाओं की जल्द से जल्द सुनवाई पूरी की जाए ।
रंगनाथ मिश्रा आयोग 2007 की रिपोर्ट
याचिका में कहा गया है कि मुख्य याचिका पहले से ही सुप्रीम कोर्ट (SC) में लंबित है और अगर जस्टिस केजी बालाकृष्णन आयोग को जांच की इजाजत दी गई तो याचिका पर सुनवाई में और देरी हो सकती है।
इस तरह की देरी से अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) मूल के ईसाइयों और मुस्लिमों के अधिकारों का हनन होगा, जिन्हें पिछले 72 वर्षों से अनुसूचित जाति के इस विशेषाधिकार से वंचित रखा गया है।
याचिका में दलील दी गई है कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए जस्टिस (Justice) रंगनाथ मिश्रा आयोग (Ranganath Mishra Commission) की 2007 की रिपोर्ट (Report) ने इस्लाम और ईसाई धर्म में परिवर्तित दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का समर्थन किया था।
केंद्र सरकार ने 7 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट (SC) को बताया था कि इस मामले में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट की अनुशंसाओं को लागू नहीं कर रही है।
केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि इस मसले की पड़ताल के लिए जस्टिस बालाकृष्णन की अध्यक्षता में एक कमेटी (Committee) का गठन किया गया है।