मुंबई: बांबे हाई कोर्ट (Bombay High Court) की दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सोमवार को जैन समाज की ओर से दायर की गई मांसाहार के विज्ञापन (Non-Vegetarian Advertisements) पर रोक लगाने वाली याचिका खारिज कर दी है।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति Madhav Jamdar की पीठ ने कहा कि यह अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।
पशु-पक्षियों की ओर देखने का नजरिया बदलता जा रहा है
जानकारी के अनुसार यह जनहित याचिका (Public Interest litigation) श्री ट्रस्टी आत्म कमल लब्धीसुरीश्वरजी जैन ज्ञानमंदिर ट्रस्ट ,सेठ मोतीशा धर्मादाय ट्रस्त और श्री वर्धमान परिवार की ओर से ज्योतींद्र शाह ने हाईकोर्ट में की थी।
इस जनहित याचिका में कहा गया था कि अगर किसी को मांसाहार करना है तो वह कर सकता है, इसका विरोध नहीं है। लेकिन मांसाहार के लिए किए जा रहे विज्ञापनों (Advertisements) की वजह से लोगों में हिंसक वृत्ति पनपने लगी है।
इससे पशु-पक्षियों की ओर देखने का नजरिया बदलता जा रहा है।
इसलिए मांसाहार के लिए TV पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाया जाना चाहिए।
इस याचिका में यह भी कहा गया है कि गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में मांसाहार के विज्ञापनों पर रोक लगाया गया है।
कानून, नियम बनाना यह सरकार और विधायिका का काम है
High Court ने कहा कि अगर किसी के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, कानून, कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) का पालन नहीं किया जा रहा है, तो उच्च न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।
आप High Court से विशिष्ट नियम बनाने के लिए कह रहे हैं, एक विशिष्ट चीज़ पर प्रतिबंध लगाने के लिए दिशा-निर्देश की मांग कर रहे हैं।
कोई भी कानून, नियम बनाना, यह सरकार और विधायिका का काम है। यह कहते हुए High Court ने उक्त याचिका खारिज कर दी।
इसके बाद याचिकाकर्ता (Petitioner) के वकील ने याचिका को वापस लेने और नए सिरे से दाखिल करने की अनुमति देने का अनुरोध किया। खंडपीठ (Bench) ने इसे स्वीकार कर लिया है।