नई दिल्ली: भोपाल गैस कांड (Bhopal Gas Tragedy) के पीड़ितों को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने करीब 7400 करोड़ की अतिरिक्त मुआवजे की मांग वाली क्यूरेटिव याचिका (Curative Petition) को खारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डाऊ केमिकल्स (Dow Chemicals) के साथ समझौता फिर से नहीं खुलेगा।
कोर्ट ने कहा कि लंबित दावों को पूरा करने के लिए RBI के पास पड़े 50 करोड़ रुपए की रकम का इस्तेमाल किया जाएगा। Supreme Court ने कहा कि अगर हम याचिका को स्वीकार करते हैं तो पेंडोरा बॉक्स खुल जाएगा।
दो दशक बाद इस मुद्दे को हम नहीं उठा सकते
जज जस्टिस संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि समझौते के दो दशक बाद केंद्र द्वारा इस मुद्दे को उठाने का कोई औचित्य नहीं बनता।
शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़ितों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI ) के पास पड़ी 50 करोड़ रुपये की राशि का इस्तेमाल केंद्र सरकार (Central Government) लंबित दावों को पूरा करने के लिए करे।
पीठ ने कहा, ‘‘ हम दो दशकों बाद इस मुद्दे को उठाने के Central Government के किसी भी तर्क से संतुष्ट नहीं हैं … हमारा मानना है कि उपचारात्मक याचिकाओं पर विचार नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था हर्जाना
’’ बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जे. के. माहेश्वरी भी शामिल हैं। पीठ ने मामले पर 12 जनवरी को फैसला सुरक्षित रखा था।
Central Government ने अपनी याचिका में कहा था कि 1989 में जब Supreme Court ने हर्जाना तय किया था, तब 2.05 लाख पीड़ितों को ध्यान में रखा गया था।
इन वर्षों में गैस पीड़ितों की संख्या ढाई गुना से अधिक बढ़कर 5.74 लाख से अधिक हो चुकी है। ऐसे में हर्जाना भी बढ़ना चाहिए। यदि Supreme Court हर्जाना बढ़ने को मान जाता है तो इसका लाभ भोपाल के हजारों गैस पीड़ितों को भी मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट ₹1 देने को भी तैयार नहीं
मामला यह है कि भोपाल में 2-3 दिसंबर की रात को यूनियन कार्बाइड (अब डाउ केमिकल्स) की फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था। इससे सैकड़ों मौतें हुई थी।
हादसे के 39 साल बाद Supreme Court की जस्टिस एसके कौल की संविधान पीठ ने 1989 में तय किए गए 725 करोड़ रुपये हर्जाने के अतिरिक्त 675.96 करोड़ रुपये हर्जाना दिए जाने की याचिका पर यह फैसला दिया है।
यह याचिका Central Government ने दिसंबर 2010 में लगाई थी और फैसला 12 साल बाद आया है। हालांकि इससे पहले Supreme Court में Dow Chemical में साफ किया था कि सुप्रीम कोर्ट ₹1 भी देने को तैयार नहीं है।