समलैंगिक विवाह मामले की सुनवाई से CJI चंद्रचूड़ को अलग करने की याचिका खारिज

एक पक्षकार ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को इस मामले की सुनवाई से अलग करने की मांग उठाई, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया

News Aroma Media
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नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह (Gay Marriage) को कानूनी मान्यता देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बुधवार को 9वें दिन भी सुनवाई हुई।

एक पक्षकार ने चीफ जस्टिस DY Chandrachud को इस मामले की सुनवाई से अलग करने की मांग उठाई, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस मांग पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी आपत्ति जताई।

अकेला व्यक्ति भी ले सकता है बच्चा गोद

सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (Conservation Commission) ने कहा कि जेंडर की अवधारणा ‘परिवर्तनशील’ हो सकती है, लेकिन मां और मातृत्व नहीं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय कानून अकेले व्यक्ति को भी बच्चा गोद लेने की अनुमति देता है। कोर्ट ने कहा कि एक बच्चे का कल्याण सर्वोपरि होता है।

देश का कानून विभिन्न कारणों से गोद लेने की अनुमति प्रदान करता है। यहां तक कि एक अकेला व्यक्ति भी बच्चा गोद ले सकता है। ऐसे पुरुष या महिला, एकल यौन संबंध (Sexual Relations) में हो सकते हैं।

कोर्ट ने कहा कि अगर आप संतानोत्पत्ति (Childbirth) में सक्षम हैं तब भी आप बच्चा गोद ले सकते हैं। जैविक संतानोत्पत्ति की कोई अनिवार्यता नहीं है।

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केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इस मुद्दे पर केंद्र को केवल सात राज्यों मणिपुर, आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, असम, सिक्किम और राजस्थान की प्रतिक्रिया मिली है।

समलैंगिक विवाह मामले की सुनवाई से CJI चंद्रचूड़ को अलग करने की याचिका खारिज-Plea to recuse CJI Chandrachud from hearing same-sex marriage case dismissed

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा…

इसमें राजस्थान सरकार का कहना है कि हमने इस विषय का परीक्षण करके समलैंगिकों (Homosexuals) को मान्यता देने का विरोध किया है। मेहता ने कहा कि राजस्थान छोड़कर बाकी राज्यों ने कहा है कि उन्हें इस पर व्यापक चर्चा करने की जरूरत है।

पहले की सुनवाई के दौरान कोर्ट (Court) ने कहा था कि शादी और तलाक के मामले में कानून बनाने का अधिकार संसद को ही है। ऐसे में हमें यह देखना होगा कि कोर्ट कहां तक जा सकता है।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं में से एक की वकील मेनका गुरुस्वामी (Menaka Guruswamy) ने कहा था कि सरकार का जवाब संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

13 मार्च को कोर्ट ने इस मामले को संविधान बेंच को रेफर कर दिया

ये केशवानंद भारती और पुट्टु स्वामी मामलों (Kesavananda Bharati and Puttu Swami Cases) में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के भी विरुद्ध है। क्योंकि न्यायिक समीक्षा का अधिकार भी अनुच्छेद 32 के तहत संविधान की मूल भावना है।

इस संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हीमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा हैं। 13 मार्च को कोर्ट ने इस मामले को संविधान बेंच (Constitution Bench) को को रेफर कर दिया था।

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