नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस महज एक दिन का जश्न नहीं है। असल में यह ऐसा दिन है, जहां हम और आप नारी विमर्श और उनके भविष्य को लेकर बड़े फलक पर सोचते हैं।
उसके लिए योजनाएं बनाते हैं और महिलाओं की सफलता को स्वीकार करते हैं। कई क्षेत्रों में अननिगत महिलाओं ने अपना मुकाम बनाया है। बीता साल कोरोना के नाम रहा।
यदि इस काल में किसी ने सबसे अधिक स्वयं को साबित किया है, तो वह महिलाएं हैं। इसलिए जब एक दिन 24 घंटे तक महिलाएं अपनी बात पूरी दुनिया के सामने रखेंगी, तो अपने आप में 8 मार्च, 2021 का दिन बेहद खास हो जाएगा।
बता दें कि 8 मार्च को दुनिया भर के 100 से अधिक वरिष्ठ पीआर पेशेवर प्रमुख वैश्विक नेटवर्किं ग संगठन, ग्लोबल वुमन इन पीआर (जीडब्ल्यूपीआर) के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एक साथ अपनी बातों को रखेंगे।
ये महिलाएं दुनिया भर की महिलाओं को सलाह देंगी। न्यूयॉर्क से सिंगापुर, लंदन से मास्को और मैक्सिको से मुंबई तक 24 घंटे की अवधि के दौरान, इन अग्रणी पीआर पेशेवरों को 20 देशों में 30 मिनट के सत्र में 200 से अधिक लोगों के बीच करियर पीआर महिलाओं की चर्चा होगी।
इसमें 14 मेंटर्स और 38 पेशेवर भारत की होंगी। बताया गया है कि ये तमाम बातें हैशटैग चूज टू चैलेंज पर होंगी।
इस सदंर्भ में जीडब्लूपीआर के इंटरनेशनल चेयरमैन कॉर्नेलिया कुंज ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, इस पहल की प्रतिक्रिया हमारी सभी अपेक्षाओं को पार कर गई है।
दुनिया भर से पीआर और संचार में वरिष्ठ भूमिकाओं में काम करने वाली कई महिलाएं हमें समर्थन देने के लिए आगे आई हैं। सच में यह अविश्वसनीय है।
हमें पूरा भरोसा है कि इस पूरे दिन के मंथन से नया विचार आएगा। उसका लाभ पूरी दुनिया की महिलाओं को होगा। खासकर उन लोगों को जो पेशेवर हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है कि पीआर उद्योग में नेतृत्व में संतुलन को फिर से तैयार करने के लिए एक वास्तविक जुनून है और हम अब इस आईडब्ल्यूडी मेंटरिंग गतिविधि का अनुसरण करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जो एक चल रहे अंतरराष्ट्रीय सलाह कार्यक्रम के साथ है।
बता दें कि जीडब्ल्यूपीआर ने पीआर में न्यूनतम पांच वर्ष के अनुभव के साथ महिलाओं को आमंत्रित किया, जो एक फॉर्म को पूरा करने के माध्यम से भाग लेने के लिए भाग लें।
असल में, पीआर एक उद्योग है, जहां जो दो तिहाई महिलाएं ही काम करती हैं।
हालिया एक शोध से पता चलता है कि बोर्डरूम में अभी भी पुरुषों की 64 प्रतिशत सीटें हैं। इसमें टीम लीडर के रूप में भी अधिक महिलाएं ही हैं।
2020 जीडब्ल्यूपीआर सर्वेक्षण ने पाया कि बोर्डरूम में बाधाओं को तोड़ने में मदद करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहल रोल मॉडल के रूप में अधिक वरिष्ठ महिलाओं की थी।