रांची: डीजीपी (DGP) नीरज सिन्हा ने प्रशांत बोस की गिरफ्तारी को ऐतिहासिक बताया है।
रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए डीजीपी नीरज सिन्हा ने कहा कि प्रशांत बोस की गिरफ्तारी ऐतिहासिक है। पिछले 20 साल में माओवादियों को सबसे बड़ा झटका लगा है। इस रैंक में न कोई पकड़ा गया था, न मारा गया था।
डीजीपी ने बताया कि झारखंड पुलिस एवं इंटेलिजेंस एजेंसीज को सूचना प्राप्त हुई कि पारसनाथ पहाड़ी क्षेत्र से कुछ महत्वपूर्ण व्यक्ति एक गाड़ी से चाईबासा जिला की ओर निकले हैं, जिनकी गतिविधि संदिग्ध प्रतीत हो रही है।
लागातार सूचना प्राप्त हो रही थी कि कोल्हान क्षेत्र में सीपीआई नक्सली संगठन के शीर्ष नेताओं का जमावड़ा लगा हुआ है। भाकपा माओवादी संगठन के शीर्ष नेताओं की महत्वपूर्ण को-ऑर्डिनेशन कमिटी की बैठक आयोजित की गयी है, जिसमें शामिल होने के लिए कई शीर्ष नेता कोल्हान पहुंचने के लिए निकले हुए हैं।
इस सूचना के बाद सत्यापन करने के लिए झारखंड पुलिस द्वारा एक विस्तृत रणनीति बनायी गयी। झारखंड पुलिस और सीआरपीएफ बलों द्वारा धनबाद, बोकारो, रांची, जमशेदपुर, सरायकेला, चाईबासा के क्षेत्रों में सर्च एवं चेकिंग अभियान चलाया जा रहा था। सभी संभावित रास्तों पर झारखंड पुलिस एवं सीआरपीएफ बलों द्वारा नाके लगाये गये थे।
इस विशेष अभियान के क्रम में सरायकेला-खरसावां जिला के कांड्रा थाना अंतर्गत गिद्दीबेड़ा टोल प्लाजा के पास चेकिंग के दौरान संदेहास्पद गतिविधि के आधार पर एक स्कॉर्पियों गाड़ी को रोका गया।
इसमें चालक सहित छह व्यक्ति सवार थे। छानबीन एवं पूछताछ के दौरान उपरोक्त व्यक्तियों की गतिविधि संदेहास्पद प्रतीत होने के कारण इन्हं् अग्रतर सत्यापन के लिए तत्काल रांची स्थित ज्वॉइंट इंटेरोगेशन सेंटर लाया गया तथा उनसे गहन पूछताछ की गयी। उनके द्वारा बताये गये नाम-पता का सत्यापन किया गया। सत्यापन के क्रम में उनके द्वारा बताया गया नाम-पता गलत पाया गया।
सत्यापन के क्रम में यह स्पष्ट हुआ कि संदिग्ध व्यक्तियों में एक प्रशांत बोस उर्फ किशन दा उर्फ मनीष उर्फ बुढ़ा और दूसरी उसकी पत्नी शीला मरांडी उर्फ शीला दी है, जो माकपा (माओवादी) संगठन में क्रमशः पोलित ब्यूरो सदस्य एवं केंद्रीय कमिटी सदस्य हैं।
प्रशांत बोस उर्फ किशन दा उर्फ मनीष उर्फ बुढ़ा पर झारखंड सरकार द्वारा उसकी गिरफ्तारी के लिए एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित है। शेष अन्य चारों भी माकपा (माओवादी) संगठन से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं।
गिरफ्तार नक्सलियों में प्रशांत बोस उर्फ किशन दा उर्फ मनीष उर्फ बुढ़ा, शीला मरांडी उर्फ शीला दी, बिरेंद्र हांसदा उर्फ जितेंद्र, राजू टुडू उर्फ निखिल उर्फ बाजु, कृष्णा बाहदा उर्फ हेवेन और गुरुचरण बोदरा शामिल हैं।
डीजीपी ने बताया कि झारखंड पुलिस ने प्रशांत बोस और उसकी पत्नी शीला मरांडी के पास से चार मोबाइल, दो एसएसडी, एक पेन ड्राइव, 1.51 लाख रुपये बरामद किये हैं। प्रशांत बोस के पास से बरामद हुए पेन ड्राइव और एसएसडी में नक्सली संगठन के कई दस्तावेज हैं, जो सरकार के खिलाफ और नक्सली संगठन के समर्थन में प्रचार, संगठन के पत्र और अन्य दस्तावेज की सॉफ्ट कॉपी है। प्रशांत बोस के खिलाफ झारखंड के रांची खूंटी, गुमला, चाईबासा, सरायकेला, जमशेदपुर, हजारीबाग, बोकारो और चक्रधरपुर रेल में 50 मामले दर्ज हैं।
इसके अलावा प्रशांत बोस के खिलाफ बिहार, बंगाल और ओड़िशा में कई मामले दर्ज हैं। प्रशांत बोस की पत्नी शीला मरांडी पर गिरिडीह और चाईबासा जिले के अलग-अलग थाना क्षेत्र में कुल 18 मामले दर्ज हैं। इसके अलावा पकड़े गये चार अन्य नक्सलियों के खिलाफ कई जिलों और राज्यों में कई मामले दर्ज हैं, जिसके बारे में पता लगाया जा रहा है।
प्रशांत बोस 60 के दशक में पढ़ाई के दौरान कोलकाता में नक्सली संगठन के मजदूर यूनियन संगठन से जुड़ा था। इससे प्रभावित होकर यह संगठन के लिए पूर्ण समर्पण से काम करने लगा।
एमसीसीआई के संस्थापक में से एक कन्हाई चटर्जी के साथ यह गिरिडीह, धनबाद, बोकारो और हजारीबाग के इलाके में स्थानीय जमींदारी प्रथा और महाजनों द्वारा जनता के शोषण और प्रताड़ना के खिलाफ संथाली नेताओं द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन के समर्थन में एमसीसीआई के बैनर तले आंदोलन को मुखर करने के लिए ये लोग इस इलाके में आये।
इस दौरान रतीलाल मुर्मू के साथ मिलकर धनबाद, गिरिडीह और हजारीबाग के क्षेत्रों में स्थानीय जमींदारों द्वारा गठित सनलाइट सेना और महाजनों के खिलाफ एमसीसीआई के बैनर तले साल 2008 तक आंदोलन करते रहे।
इस क्षेत्र के अलावा जमींदारों द्वारा गठित बिहार के जहानाबाद, भोजपुर और गया के इलाके में सक्रिय रणवीर सेना और पुलिस के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए झारखंड के पलामू, चतरा, गुमला, लोहरदगा, संथाल परगना और कोल्हान के क्षेत्र में भाकपा माओवादी संगठन को मजबूत किया। इस दौरान बिहार, झारखंड, बंगाल और ओड़िशा राज्य में कई बड़ी नक्सली घटनाओं को अंजाम दिया।
साल 1974 में पुलिस द्वारा प्रशांत बोस को गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल भेजा गया। साल 1978 में जेल से निकलने के बाद प्रशांत बोस दोबारा भाकपा माओवादी संगठन में शामिल हो गया।
पिछले 45 सालों से संगठन के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। साल 2004 में भाकपा माओवादी संगठन गठित होने के बाद प्रशांत बोस को केंद्रीय कमिटी सदस्य, पोलित ब्यूरो सदस्य, केंद्रीय मिलिट्री कमीशन सदस्य और ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो का प्रभारी बनाया गया।
सारंडा में रहकर संगठन के कई शीर्ष नेताओं और दस्ता सदस्यों के साथ मिलकर झारखंड, बिहार, ओड़िशा, बंगाल राज्य में भाकपा माओवादी संगठन को विस्तारित करते हुए कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया।
प्रशांत बोस ने झारखंड-बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र में रहकर कई नक्सली घटनाओं को अंजाम दिया, जिनमें सांसद सुनील महतो की हत्या भी शामिल है। प्रशांत बोस नक्सली संगठन के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो के सचिव और थिंक टैंक के रूप में काम कर रहा था। उसके ऊपर झारखंड सरकार द्वारा एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया गया था।