Supreme Court: देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि आरोपी पर तब तक इस बात का दायित्व नहीं है कि वह खुद को निर्दोष साबित करे जब तक कि कानून (Law) ऐसा न कहता हो।
अभियोजन पक्ष (Prosecutors) पर इस बात का दायित्व है कि वह आरोपी के खिलाफ बिना संदेह केस साबित करे। Justice A.S Oka की अगुआई वाली बेंच ने रेप (Rape) मामले में आरोपी को बरी करते हुए यह व्यवस्था दी है।
Supreme Court ने कहा कि अगर किसी मामले में कानूनी प्रावधान ही ऐसा है तो वह अलग बात है। रेप केस (Rape Case) में आरोपी को हाई कोर्ट (High Court) ने दोषी करार दिया था जिसके खिलाफ Supreme का दरवाजा खटखटाया गया था।
Supreme Court कह चुका है कि हर नागरिक को निर्दोष माना जाना उसका मानवाधिकार है। जो कानूनी सिद्धांत और संवैधानिक व्यवस्था है उसके मुताबिक हर आरोपी तब तक निर्दोष है जब तक कि गुनाह साबित न हो जाए। केस साबित करने का दायित्व अभियोजन पक्ष पर है।
मौजूदा मामले में Supreme Court ने जो व्यवस्था दी है वह इस सिद्धांत को और पुख्ता करती है। संविधान यह भी कहता है कि किसी को भी उसके खुद के खिलाफ गवाही के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। हर शख्स को चुप रहने का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद-20 (3) के तहत नागरिक को यह अधिकार है।
नार्को टेस्ट (Narco Test) या इस तरह का दूसरा साइंटिफिक टेस्ट (Scientific Test) भी इसी दायरे में था। अदालत ने कहा कि धारा-114 ए इस मामले में लागू नहीं होता।
कोर्ट ने कहा कि यह तथ्य सामने आया है कि लड़की अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी। गेस्ट हाउस (Guest House) के मालिक ने कहा कि आरोपी और लड़की ने यह कहा था कि वह दोनों पति-पत्नी हैं। दोनों के बीच Whatsapp पर करीब 400 मैसेज का ट्रांसफर है। घटना के बाद भी दोनों संपर्क में थे।
जब गेस्ट हाउस से दोनों निकले तब भी लड़की ने कोई शोर नहीं मचाया था। Supreme Court ने तमाम तथ्यों के आधार पर आरोपी को आरोपों से मुक्त कर दिया।