Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में लगभग सभी धर्म के लोग पढ़ते हैं इसका हमेशा से राष्ट्रीय महत्व भी रहा है इस मामले में केंद्र सरकार ने Supreme Court में एक बड़ा बयान देते हुए कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का अब कोई अर्थ नहीं है क्योंकि यह किसी विशेष धर्म का विश्वविद्यालय नहीं है।
आपको बता दे की चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी किसी भी शिक्षण संस्थान को अल्पसंख्यक दायरे में सीमित रखने की बजाय सबके लिए खुला रखने की बात भी कही थी।
इस मामले में Supreme Court में लिखित डाली ले दाखिल करते हुए मौजूदा NDA सरकार ने पिछले 10 साल की UPA सरकार की विपरीत रुक दिखाया है सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के जरिए दाखिल किए गए दलील में केंद्र सरकार से यह कहा गया है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का टैग अपना दिया जाए ऐसा इसलिए क्योंकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का राष्ट्रीय चरित्र हमेशा से रहा है साथ ही यह किसी विशेष धर्म का विद्यालय नहीं है।
वर्तमान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अपने राष्ट्रीय चरित्र को देखते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है या किसी भी विशेष धन का संस्थान नहीं है केंद्र की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह लिखित दलित सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश 7 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष पेश की है।
चीफ जस्टिस की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के और 7 जजो की संविधान पीठ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत ,जस्टिस जेबी पारदी वाला, जस्टिस दीपंकर दत्ता , जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल है।
संविधान पीठ को विचार करना था कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मानदंड क्या है क्या संसदीय कानून द्वारा निर्मित कोई शैक्षणिक संस्थान संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त कर सकता है या नहीं।
साथी पीछने अल्पसंख्यक दर्जे के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की की याचिका पर सोमवार से सुनवाई शुरु दी है। इस विषय में पीठ के समक्ष आज यानि बुधवार को भी बैठक होनी है।