नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव करीब हैं। राजनीतिक दलों से इतर किसान संगठनों की नजरें भी अब उधर घूम गई हैं।
रोहतक के गढ़ी सांपला में मंगलवार को हुई किसान महापंचायत में किसान नेताओं ने कहा वे जल्द पश्चिम बंगाल भी जाएंगे।
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता राकेश टिकैत ने कहा कि एक महापंचायत पश्चिम बंगाल में भी आयोजित की जाएगी।
अभी तक उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में हो रहीं महापंचायतों से ही भाजपा परेशान थी। अब पश्चिम बंगाल में महापंचायत के ऐलान से पार्टी के भीतर खलबली मच गई है।
खबर है कि केंद्रीय मंत्री और पश्चिमी यूपी के नेता संजीव बालियान के घर जाट नेताओं की एक बैठक होने वाली है। पार्टी जाट नेताओं को साधने की कोशिश में है।
मंगलवार को भाजपा चीफ जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री ने पश्चिमी यूपी, राजस्थान और हरियाणा के पार्टी नेताओं संग बैठक की थी।
भाजपा के लिए चिंता इस वजह से भी बड़ी है, क्योंकि किसान संगठन चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल में वह हार जाए।
रोहतक में हरियाणा भाकियू प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी ने मीडिया से कहा कि जहां तक पश्चिम बंगाल का संबंध है, अगर भाजपा के लोग हार जाते हैं, तभी हमारा आंदोलन सफल होगा। अभी तक सामने आए चुनावी सर्वे में भाजपा को फायदा होता दिख रहा है।
मगर किसान आंदोलन के मजबूती से पश्चिम बंगाल पहुंचने पर उसे कितना नुकसान होगा, इसको लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं i
हरियाणा, पश्चिमी यूपी और राजस्थान में खाप पंचायतों की तरफ से लगातार महापंचायत आयोजित की जा रही है। इन महापंचायतों में केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों का खुलकर विरोध हो रहा है।
किसान आंदोलन के समर्थन में जाट बेल्ट तेजी से एकजुट हो रही है और इसी के मद्देनजर नड्डा और शाह मंगलवार को इधर के भाजपा नेताओं से मिले थे।
इस बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा संजीव बालियान, भाजपा किसान मोर्चा के अध्यक्ष राजकुमार चाहर, सांसद सत्यपाल सिंह भी मौजूद थे।
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इन नेताओं को जनता, विशेष रूप से किसान समुदाय के बीच जाकर तीन नए कृषि कानूनों के बारे में गलत धारणाएं और गलतफहमी को दूर करने के लिए कहा।
बालियान के घर बुधवार को जाट नेताओं की एक बैठक बुलाई गई है।
रोहतक में हुई किसान महापंचायत को संबोधित करते हुए चढूनी ने लोगों से अपील की कि वे पंचायत से संसद तक के चुनाव में ऐसी किसी व्यक्ति को वोट नहीं दें जो प्रदर्शनकारी किसानों की मदद नहीं करते हैं और उनके आंदोलन को समर्थन नहीं देते।