रांची : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने कहा कि आज विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) है।
इस अवसर पर दो दिवसीय झारखंड आदिवासी महोत्सव के उद्घाटन समारोह (Jharkhand Tribal Festival Opening Ceremony) में शामिल होने का मौका मिला।
इस महोत्सव के अपने मायने हैं। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों से आये हुए आदिवासी समूह नृत्य एवं गायन (Tribal Group Dance and Singing) तो प्रस्तुत करेंगे ही, साथ ही आदिवासी समाज की समस्या एवं अन्य समसामयिक विषयों पर विमर्श का भी कार्यक्रम रखा गया है।
इस महोत्सव से आदिवासी जीवन दर्शन और लोक संस्कृति को एक अलग और विशिष्ट पहचान मिलेगी।
नृत्य, संगीत के साथ संघर्ष आदिवासी समाज की पहचान
मुख्यमंत्री ने कहा कि नृत्य, संगीत के साथ-साथ सदैव संघर्ष आदिवासी समाज की मुख्य पहचान है। आज जब मैं आदिवासी महोत्सव के मंच से बोल रहा हूं तो बिना झिझक कहना चाहूंगा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में हमारे आदिवासी भाई-बहन प्रताड़ना झेलने को विवश हैं।
अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं। मध्य प्रदेश, मणिपुर, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, तमिलनाडु और मणिपुर में हजारों घर जल कर तबाह हो गए। सैकड़ों लोगों को मारा गया। महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ हुआ।
दरअसल, यह सदियों से चले आ रहे संघर्ष का ही विस्तार है। संघर्ष है वर्चस्ववादी ताकतों और समानता- भाईचारे की ताकतों के बीच।
संघर्ष है धार्मिक कट्टरपंथियों और ‘जियो और जीने दो’ की उदार ताकतों के बीच। संघर्ष है भविष्यवादी, भाग्यवादी चिंतकों और वर्तमान को समृद्ध करने वाली शक्तियों के बीच। संघर्ष है प्रकृति पर कब्जा करने वाली विनाशकारी शक्तियों एवं प्रकृति का सहयोगी-सहभोगी बनकर रहने वाली श्रमजीवी एवं साहसी शक्तियों के बीच।
एकजुट होकर लड़ें और आगे बढ़े
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मैं देश के 13 करोड़ से ज्यादा आदिवासियों भाइयों-बहनों से एक होकर लड़ने एवं बढ़ने का अपील करता हूं।
गोंड, मुंडा, भील, कुकी, मीणा, संथाल, असुर, उरांव, चेरो आदि सभी को एकजुट होकर सोचना होगा। आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है।
हम जाति-धर्म-क्षेत्र के आधार पर बंटे हुए हैं जबकि सबकी संस्कृति एक है। खून एक है, तो समाज भी एक होना चाहिए। हमारा लक्ष्य भी एक होना चाहिए। हमारी समस्या का बनावट लगभग एक जैसा है, तो हमारी लड़ाई भी एक होनी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि लगभग सभी हिस्सों में आदिवासी समाज को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा। केंद्र तथा राज्य में सरकार चाहे किन्हीं की हो आदिवासी समाज के दर्द को कम करने के लिए कभी समुचित प्रयास नहीं किये गये।
हमारी व्यवस्था कितनी निर्दयी है? कभी यह पता लगाने का काम भी नहीं किया कि कहां गए खदानों, डैमों, कारखानों के द्वारा विस्थापित किये गए लोग?
खदानों, उद्योगों और डैमों से विस्थापित-बेघर हुए लोगों में से 80 प्रतिशत आदिवासी हैं। लाखों लोगों को भाषा, संस्कृति की जड़ों से काट दिया गया।
कल का किसान आज वहां साइकिल पर कोयला बेचने को मजबूर है। बड़े-बड़े शहरों में जाकर बर्तन धोने, बच्चे पालने या ईंट भट्ठों में बंधुआ मजदूरी करने के लिए विवश किया गया है।
बिना पुनर्वास किये एक्ट बनाकर लाखों एकड़ जमीन कोयला कम्पनियों को दिया गया। हमारा झरिया शहर बरसों से आग की भट्ठी पर तप रहा है लेकिन कोयला कम्पनियां एवं केंद्र कान में तेल डालकर सोई हुई है ।
विलुप्त होती जा रहीं आदिवासी भाषाएं
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज देश के विभिन्न हिस्सों में आदिवासियों की अनेक भाषाएं गायब हो चुकी हैं या गायब होने के कगार पर है।
आज हमारे जीवन को आस्था के केन्द्रों से बांधने का प्रयास किया जा रहा है। लोग तो हमसे हमारा नाम तक छीनने में लगे हुए हैं।
आज जब आदिवासी अपनी पहचान के लिए इतिहास में की गयी उपेक्षा के विरुद्ध बोलने का प्रयास कर रहा है तो उसे चुप कराने का प्रयास हो रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जब हम आदिवासी संस्कृति, आदिवासी समाज के इतिहास को जानने का प्रयास करते हैं, तो 1800 ईसा के पूर्व का ज्यादा जिक्र नहीं मिलता है।
इन परिस्थितियों में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस देश की सभ्यता-संस्कृति को गढ़ने में आदिवासी समाज के योगदान की पुनः व्याख्या की जाए।
हमें आदिवासी समाज को आदिवासी विचारक, लेखक, विद्वान की नजरों से देखने की जरूरत है। यह सच है कि आज भी देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, प्रताड़ित, विस्थापित एवं शोषित वर्ग आदिवासी वर्ग है लेकिन यह भी सच है कि हम एक महान सभ्यता के वारिस हैं। हमारे पास विश्व एवं मानव समाज को देने के लिए बहुत कुछ है। जरूरत है कि नीति निर्माताओं के पास दृष्टि हो।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मेरी चाहत है कि विभिन्न आदिवासी समूहों के बीच परस्पर संवाद शुरू हो। आज जो हम विभाजित हैं, असंगठित हैं, यही कारण है कि मणिपुर के आदिवासी उत्पीड़न का विषय झारखंड के मुंडा लोगों का विषय नहीं बन पा रहा है। राजस्थान के मीणा भाई के दर्द को मध्य प्रदेश के भील अपना मान कर आगे नहीं आ रहे।
राज्य समन्वय समिति के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन ने कहा कि आदिवासी समुदाय की संस्कृति एक जैसी है। आदिवासियों से मेरा आग्रह है कि वे अपने बच्चे-बच्चियों को शिक्षित जरूर करें। जब बच्चे शिक्षित होंगे तभी आदिवासी समुदाय उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ेगा।
उन्होंने कहा कि आदिवासी महोत्सव पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। यह महोत्सव आदिवासी समुदाय की एकजुटता और आपसी भाईचारा को दर्शाता है। आने वाली पीढ़ी भी इसी तरह अपनी संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी रहे, इसके लिए उन्हें प्रेरित करने की आवश्यकता है।
35 पुस्तकों और डाक टिकट का विमोचन
इस अवसर पर TRI की ओर से आदिवासी समुदाय (Tribal Community) पर आधारित 35 पुस्तकों का विमोचन किया गया।
झारखंड आदिवासी महोत्सव (Jharkhand Tribal Festival) के लोगो पर आधारित डाक टिकट का भी विमोचन किया गया।
इस महोत्सव में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मंत्री चम्पाई सोरेन, विधायक विनोद सिंह, विधायक जय मंगल सिंह, विधायक राजेश कच्छप, मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, पुलिस महानिदेशक अजय कुमार सिंह, प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का, मुख्यमंत्री की प्रधान सचिव वंदना दादेल और मुख्यमंत्री के सचिव विनय कुमार चौबे समेत कई अन्य मौजूद थे।