रांची : क्षेत्रीय जनविकास परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष दयानंद मिश्रा ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम एक पत्र लिखा है।
इस पत्र में उन्होंने कहा है कि राज्य की विधानसभा दो वर्षों से बिना नेता प्रतिपक्ष के चल रही है।
इससे जनता की आवाज सुव्यवस्थित तरीके से सदन में नहीं आ पा रही है, वहीं इससे राज्य की राजनीति का ओछा चरित्र भी प्रदर्शित हो रहा है।
उन्होंने कहा है कि छद्म राजनीतिक स्वार्थ को हथियार बनाकर अपनी मंशा पूरी करने की बात और है, लेकिन झारखंड में भाजपा द्वारा बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता एलान किया जाना तब कहीं से गलत नहीं,
जब विलयित पार्टी के तीन में से दो विधायकों को पहले ही निष्कासित किया जा चुका और दोनों ने कांग्रेस की सदस्यता भी ले ली थी।
ऐसे में शेष बचे एकमात्र विधायक और पार्टी अध्यक्ष ने अपने कार्यकर्ताओं की सर्वसम्मति से भाजपा में विलय किया।
उन्हें पार्टी ने भी स्वीकार किया और चुनाव आयोग ने भी पूर्व में जेवीएम को आवंटित चुनाव चिह्न को जब्त कर विलय को जायज ठहराया।
मिश्रा ने कहा कि इसमें स्पीकर द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर मामले को इस तरह खींचना स्वच्छ राजनीति का प्रतीक बिल्कुल नहीं माना जा सकता है।
सदन का नेता होने के कारण विनम्रता के लिए जाने जानेवाले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बड़ा दिल दिखलाते हुए इस मामले को अबिलंव निष्कर्ष तक पहुंचाने में भूमिका निभानी चाहिए।
उन्होंने कहा है कि राज्य गठन से लेकर दल-बदल मामले में यह 28वां मामला है। इससे पहले सभी मामलों को खींचा नहीं गया, ऐसा हरगिज नहीं कहा जा सकता।
लेकिन, गलत दिशा में जा रही परंपरा का ही अनुसरण इस तरह किया जायेगा, तो स्वस्थ राजनीति की कल्पना भी अकल्पनीय ही रहेगी।
इस मामले में जारी अनावश्यक गतिरोध से झारखंड की राजनीति की गरिमा ध्वस्त हो रही है और हेमंत सोरेन जैसे ओजस्वी नेता के चरित्र-स्वभाव से भी मेल नहीं खाता।