Harmu river has become a poisonous drainरांची की पहचान रही हरमू नदी आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। कभी यह नदी आस्था, जलस्रोत और हरियाली का प्रतीक मानी जाती थी, मगर अब यह एक बदबूदार और गंदगी से लबालब नाले में तब्दील हो चुकी है। दशकों की सरकारी उपेक्षा, अनियंत्रित शहरीकरण और खोखली योजनाओं ने नदी को सिर्फ भौगोलिक नक्शे में ही जिंदा छोड़ा है।
कभी जलस्रोत रही नदी अब जहरीली धार है
हरमू नदी रांची के पश्चिमी हिस्से से निकलती है और शहर के कई मोहल्लों से होते हुए स्वर्णरेखा नदी में जाकर मिलती है। पुराने दौर में यह नदी शहरवासियों के लिए पेयजल, सिंचाई और भूजल पुनर्भरण का प्रमुख आधार थी। इसके तटों पर बने प्राचीन मंदिर और आवासीय बस्तियां इसकी सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाते हैं। लेकिन आज इसकी जगह ले ली है काले, गंदे और रुकते हुए पानी ने, जो सिर्फ बीमारियां फैला रहा है।
शहरीकरण की आंधी ने घोंटी नदी की सांस
जैसे-जैसे रांची में आबादी और निर्माण कार्यों का विस्तार हुआ, वैसे-वैसे हरमू नदी का प्राकृतिक स्वरूप नष्ट होता गया। अब यह नदी नहीं, बल्कि पूरे शहर का सीवेज डंपिंग ज़ोन बन चुकी है। घरेलू कचरे से लेकर निर्माण मलबे और प्लास्टिक तक, सब इसमें बेरोकटोक डाला जा रहा है। नदी किनारे की भूमि पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण ने इसके जलप्रवाह को भी अवरुद्ध कर दिया है।
सरकारी योजना बनी भ्रष्टाचार का पर्याय
2017 में झारखंड सरकार और नगर निगम ने नदी के कायाकल्प के लिए 85 करोड़ रुपये की परियोजना शुरू की थी। वादा किया गया था कि नदी की सफाई होगी, घाट बनाए जाएंगे, एसटीपी लगेगा और हरियाली के साथ वॉकवे विकसित होंगे। लेकिन सात साल बाद भी नदी की स्थिति जस की तस बनी हुई है। घाट अधूरे पड़े हैं, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चालू नहीं हुआ है, और ड्रेनेज कार्य अधूरा छोड़ दिया गया है।
निगरानी रिपोर्ट ने खोल दी सच्चाई की परतें
2024 में हाईकोर्ट की निगरानी टीम ने अपनी रिपोर्ट में स्थिति की गंभीरता को उजागर किया। जांच में पाया गया कि अधिकतर कार्य केवल कागजों तक सीमित रहा। अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से बड़ी धनराशि बर्बाद हुई है। फील्ड पर निरीक्षण की कोई व्यवस्था नहीं और जिम्मेदारी तय करने का कोई तंत्र नहीं। रिपोर्ट साफ इशारा करती है कि यह योजना ज़मीन पर लागू होने के बजाय केवल दिखावे तक सीमित रही।
अब यह केवल पर्यावरणीय संकट नहीं, जनस्वास्थ्य पर खतरा है
हरमू नदी की हालत अब न सिर्फ प्रकृति के लिए, बल्कि लोगों के जीवन के लिए भी खतरा बन गई है। नदी के आसपास डेंगू, मलेरिया और त्वचा रोगों के मामले बढ़ रहे हैं। गंदा पानी ज़मीन में रिसकर भूजल को दूषित कर रहा है, जिससे जलस्तर तेजी से गिर रहा है। पक्षियों और वनस्पतियों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका है।
नदी किनारे रहने वाले लोगों ने बार-बार प्रशासन से गुहार लगाई लेकिन हर बार उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। अब हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि बच्चों को नदी के पास भेजना भी खतरे से खाली नहीं। लोगों का कहना है कि करोड़ों खर्च हुए लेकिन नदी की दशा और भी बदतर हो गई है।
प्रशासन की सफाई पर उठे सवाल
नगर निगम और राज्य सरकार का दावा है कि कोविड-19 के चलते कार्यों में देरी हुई और अब परियोजना दोबारा शुरू की जा रही है। हालांकि पर्यावरणविद इस बात को महज बहाना मानते हैं। उनका कहना है कि जब तक पारदर्शिता, जनसुनवाई और जवाबदेही नहीं होगी, तब तक कोई योजना जमीनी हकीकत में नहीं बदल सकती।
हरमू की यह दुर्दशा, पूरे सिस्टम की नाकामी का नतीजा है
हरमू की मौजूदा स्थिति सिर्फ एक नदी की मौत नहीं, बल्कि प्रशासनिक सुस्ती, योजनाओं के लचर क्रियान्वयन और आमजन की चुप्पी का परिणाम है। जब तक लोग सवाल नहीं पूछेंगे और जवाबदेही की मांग नहीं करेंगे, तब तक ऐसी नदियां फाइलों और बजट में दफन होती रहेंगी।