रांची: झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) की संशोधित नियमावली 2021 के खिलाफ दायर याचिका पर हाई कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई।
सुनवाई जस्टिस रवि रंजन और जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ में हुई।हाईकोर्ट ने मामले में राज्य सरकार से पूछा कि किन मामलों में संशोधन किया गया है। ऐसा निर्णय लिया गया है तो इससे संबधित संचिका कोर्ट में पेश की जाये।
अदालत ने कहा कि सरकार की अवधारणा है कि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी राज्य के बाहर पढ़ाई करेंगे और सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी अनिवार्य रूप से राज्य में पढ़ेंगे।
महाधिवक्ता से पूछा गया है कि संबधित नियमों के तहत सरकार आरक्षण की धारणा के साथ कार्य कर रही है।
हिंदी और अंग्रेजी को पेपर टू से हटा कर बंगाली, उर्दू को शामिल करने का क्या औचित्य है। क्या सरकार के पास हिंदी भाषियों को लेकर कोई डाटा उपलब्ध है और क्या भाषा का विषय अनिवार्य है तो हिंदी को हटाने का निर्णय क्यों लिया गया।
इस संबध में कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। मामले में राज्य सरकार और जेएसएससी से जवाब मांगा गया है। राज्य सरकार पक्ष से महाधिवक्ता राजीव रंजन मौजूद रहे।
21 दिसंबर को मामले की अगली सुनवाई होगी। प्रार्थी पक्ष से दलील पेश करते हुए अधिवक्ता अजीत कुमार ने कहा कि इस तरह का प्रावधान करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। संस्थानों के भौगौलिक स्थिति के आधार पर राज्य सरकार ने वर्गीकरण किया है, ये संविधान योग्य नहीं है।
परीक्षा की मूल योग्यता स्नातक है। ऐसे में दसवीं और 12वीं के संबध में राज्य सरकार के संस्थानों से परीक्षा पास करने की शर्त गैर कानूनी है। इस प्रकार का वर्गीकरण आरक्षण के समान है।
पेपर दो में अंग्रेजी और हिंदी को हटाकर उर्दू को शामिल करना, राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति करता है। हिंदी भाषी छात्रों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। दायर याचिका में संशोधित नियमावली को चुनौती दी गयी है।
याचिका में कहा गया है कि नयी नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया गया है जो संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
वैसे उम्मीदवार जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है। नयी नियमावली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है।
जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है।उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना राजनीतिक फायदे के लिए है। राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी है। उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग करते हैं।
ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी बहुल अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है।
इसलिए नई नियमावली में निहित दोनों प्रावधानों को निरस्त किया जाने की मांग है। मामले में प्रार्थी कुशल कुमार और रमेश हांसदा ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।