रांची: पति की मौत के बाद जिस बेटे को अपनी नौकरी दे दी उसी बेटे ने ऐसा काम किया है कि गांव-समाज थू-थू कर रहा है। जी हां, राजधानी रांची में एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसके बाद से हर महिलाएं यही कह रही है कि ऐसे बेटे को जन्म देने से अच्छा है कि बिना बेटा के ही रहें।
दरवाजे पर मां की लाश पड़ी है। बहनें गिड़गिड़ा रही हैं। लेकिन इकलौता बेटा और बहू ने खुद को रूम में लॉक कर लिया है। मां के शव को आंगन तक में आने नहीं दिया।
वहीं, बिलख रही बहनों को गांव से बाहर दूसरे गांव में मां का अंतिम संस्कार करने की हिदायत भी दे डाली।
नहीं पसीजा बेटे का दिल, बेटियों ने मां के शव को दिया कंधा
भाई के इस रैवये से आहत बहनें रोने लगीं और बार-बार कहती रहीं कि मां को कोरोना नहीं था।
उनकी रिपोर्ट निगेटिव आ गई थी। लेकिन भाई और उसकी पत्नी पर तनिक भी असर नही पड़ा।
अंत में दोनों बहनों ने ही मां के शव को कंधा दिया और गांव से एक किलोमीटर दूर मसना स्थल में अपनी मां को दफन कर अंतिम रस्म पूरी की।
अस्पताल झाकंने तक नहीं गया बेटा
दरअसल, गांव की 55 वर्षीया सांझो देवी की मौत सीसीएल के गांधीनगर अस्पताल में हो गयी थी।
उनकी तबीयत बिगड़ने पर बेटी रीना देवी और दीपिका कच्छप अस्पताल में भर्ती करायी और उनकी सेवा कर रही थीं।
13 दिनों तक मां का इलाज चला लेकिन एक दिन भी बेटा लालू उरांव अस्पताल नहीं गया। बेटे को शक था कि उसकी मां को कोरोना हो गया है। इस कारण वह अस्पताल नहीं जा रहा था।
पति की मौत के बाद मां ने बेटे को दे दी थी अपनी नौकरी
बताया गया कि लालू उरांव के पिता सीसीएल में नौकरी करते थे। सेवाकाल के दौरान ही वर्ष 2009 में उनकी मृत्यु हो गयी।
इसके बाद अनुकंपा के आधार पर पहले उनकी पत्नी सांझो देवी को नौकरी का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन मां ने अपनी नौकरी बेटे को दे दी।
वर्ष 2011 में बेटे लालू उरांव को सीसीएल में नौकरी मिली। लालू की बहनों ने बताया कि अनुकंपा पर नौकरी मिलने के बाद से ही वह हमेशा झगड़ा करने लगा।
मां को भरण पोषण के लिए पैसे भी नहीं देता था। इस कारण उनकी मां मजदूरी कर अपना गुजारा करती थी। दोनों बहनों की शादी हो गयी है और वो ससुराल में रहती हैं।