नई दिल्ली: पूरे देश में टीके के टोटे से हाहाकार मचा हुआ है, लेकिन वैक्सीन कंपनियां आपदा की इस घड़ी में भी कमाई करने में जुटी हैं।
देश की वैक्सीन कंपनियों ने जहां 5 हजार करोड़ कमा लिए, वहीं कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम अकेले अब तक 2200 करोड़ का मुनाफा कमा चुकी है।
फिर भी देश में वैक्सीन का टोटा है। इस कारण देशभर में वैक्सीनेशन अभियान ठप हो गया है।
वैक्सीनेशन ने भारत को कोविड-19 की अफरा-तफरी से उबरने के लिए रास्ता दिया है, लेकिन वैक्सीन की आपूर्ति ही पर्याप्त नहीं है और इसके लिए बजट के बारे में भी स्थिति स्पष्ट नहीं है।
वैक्सीन की कमी के चलते देशभर में वैक्सीनेशन अभियान पूरी तरह सुस्त पड़ा है।
130 करोड़ की आबादी में अब तक जहां 17.72 करोड़ लोगों को वैक्सीन का टीका लगा है वहीं सिर्फ 4 करोड़ लोग ही ऐसे हैं जिनको वैक्सीन के दोनों डोज लग पाए।
16 हजार करोड़ के मुनाफे का आरोप
वैक्सीन कंपनियों ने 5 हजार करोड़ उस समय कमाए, जब देश को वैक्सीन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हुई, लेकिन अब भारत सहित दुनियाभर में वैक्सीन की मांग के चलते यह कंपनियां 16 हजार करोड़ का मुनाफा कमाएंगी।
यह आरोप दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने लगाते हुए कहा कि केन्द्र सरकार दोनों कंपनियों को मुनाफा कमाने का बहुत ज्यादा अवसर दे रही है।
केन्द्र को सीरम जो वैक्सीन 150 रुपए में दे रही है, वही राज्यों को दोगुने दाम पर दी जा रही है।
सीरम इंस्टिट्यूट द्वारा जारी वित्तीय आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष 2019-20 में ही 5920 करोड़ का टर्नओवर किया, जिसमें उसने 41.3 प्रतिशत शुद्ध मुनाफे के तौर पर 2251 करोड़ कमाए।
इसी तरह देश में वैक्सीन पर काम कर रही अन्य 418 कंपनियों ने 5 हजार करोड़ रुपए से अधिक आय की घोषणा की।
सीरम राज्य सरकारों को 300 रुपए तो निजी अस्पतालों को 600 रुपए प्रति खुराक के हिसाब से कोविशील्ड की आपूर्ति कर रही है, जबकि केन्द्र सरकार को डेढ़ सौ रुपए में भी वैक्सीन देने पर लाभ कमा रही है।
इतने मुनाफे के बावजूद सीरम वैक्सीन के दाम बढ़ाने की मांग कर रही है।
केंद्र की सुस्ती से बिगड़ी स्थिति
भारत सरकार द्वारा जहां कोरोना से लड़ाई में ढिलाई बरती गई वहीं जीवन बचाने वाली वैक्सीन के उत्पादन पर भी ध्यान नहीं दिया गया और नतीजा यह रहा कि वैक्सीन उत्पादन करने वाली सीरम ने अधिकांश डोज जहां विदेशों में निर्यात कर डाले वहीं देश की अन्य दवा उत्पादक कंपनियों को भारत सरकार ने मंजूरी ही नहीं दी और न ही भारत की बायोटेक कंपनी की वैक्सीन को तवज्जो दी।
नतीजा यह रहा कि जो कंपनियां हर माह 10 करोड़ वैक्सीन बनाने का दावा कर रही थी वह 6 माह में देश को मात्र 17.72 करोड़ टीके दे पाई और केवल 4 करोड़ लोगों को डबल डोज लग पाए।
13 राज्य विदेशों के भरोसे… निकाले ग्लोबल टेंडर
सीरम और बायोटेक द्वारा मांग की आपूर्ति से हाथ खड़े कर दिए जाने के बाद दिल्ली, राजस्थान सहित 13 राज्यों ने ग्लोबल टेंडर निकालकर विदेशी वैक्सीन निर्माताओं से वैक्सीन खरीदने का निर्णय लिया है।
इन दोनों राज्यों के अलावा कर्नाटक, उत्तराखंड, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, ओडिशा, हरियाणा के साथ ही मध्यप्रदेश भी शामिल है।
इन राज्यों के जरिए टीके की कितनी खुराक मंगाई जाएगी, यह अब तक स्पष्ट नहीं हैं।
कर्नाटक की योजना 2 करोड़ (20 मिलियन) खुराक खरीदने की है, जबकि राजस्थान एक से चार करोड़ (10-40 मिलियन) खुराक के बीच कहीं भी ऑर्डर करेगा।
टीकों के आयात को भारत सरकार के मानदंडों को पूरा करना होगा।
भारतीय दवा नियंत्रक ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया लिमिटेड, भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड और गामालेया इंस्टीट्यूट द्वारा टीकों को मंजूरी दी है।
भारत इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अनुमोदित टीकों का भी आयात कर सकता है।
ये फाइजर इंक, मॉडरना, जॉनसन एंड जॉनसन, एस्ट्राजेनका पीएलसी और चाइना नेशनल फार्मास्यूटिकल्स ग्रुप कॉर्प (सिनोफॉर्म) द्वारा निर्मित टीके हैं।
कितनी वैक्सीन की जरूरत है?
भारत की अनुमानित जनसंख्या 139 करोड़ है।
अगर हम यह मान लें कि इनमें से 70 प्रतिशत आबादी वैक्सीन के लिए पात्र है तो यह संख्या लगभग 97.4 करोड़ आती है।
अगर हम यह मान लें कि हर्ड इम्यूनिटी पाने के लिए इनमें से 60 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन लगाना जरूरी होगा, तब हमें 58.4 करोड़ लोगों का टीकाकरण करना ही पड़ेगा।
अगर इसे सुलझाकर कहें तो 60 करोड़ से लेकर एक अरब आबादी टीकाकरण के लिए पात्र है।
इसका मतलब है कि भारत में उपलब्ध दोहरे डोज वाली वैक्सीन के साथ सभी का टीकाकरण करने के लिए हमें 1.2 अरब से 2 अरब डोज की जरूरत है।
वैक्सीन आपूर्ति की मौजूदा स्थिति
इतने ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाने के लिए उत्पादन क्षमता बहुत महत्वपूर्ण है।
9 मई को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे के अनुसार सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (जो कोविशिल्ड का उत्पादन करता है) ने अपनी उत्पादन क्षमता को प्रति माह पांच करोड़ से 6.5 करोड़ तक बढ़ाया है।
भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (जो कोवैक्सिन उत्पादित करता है) ने अपने उत्पादन को 9 लाख डोज से दो करोड़ डोज तक बढ़ाया।
यह उम्मीद है कि यह जुलाई के अंत तक प्रति माह 5.5 करोड़ डोज बढ़ जाएगी।
स्पूतनिक-वी (डॉ. रेड्डीज लैब की ओर से वितरित) की आपूर्ति जुलाई के अंत तक तीन लाख डोज से बढ़कर 1.2 करोड़ डोज तक पहुंचने की उम्मीद है।
इस प्रकार हमारे पास जुलाई के अंत तक प्रति माग 13.2 करोड़ डोज उपलब्ध होगी।
अगर हम यह मान लें कि सभी लोगों का टीकाकरण करने में चार महीने लग जाएंगे, तब भारत को हर महीने 30-60 करोड़ डोज की जरूरत है।
कोविड-19 की दूसरी लहर में अधूरे इंतजाम और ध्यान देने के आरोपों को खारिज करते हुए नीति आयोग ने कहा है कि वायरस फिर से उभर सकता है और इसलिए राज्यों के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर पर तैयारी की जानी चाहिए, बुनियादी ढांचे को बढ़ाने की जरूरत है।
नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वी के पॉल ने इन आरोपों को खारिज किया कि सरकार दूसरी लहर की तीव्रता से अनजान थी।
उन्होंने कहा कि हम इस मंच से बार-बार चेतावनी देते रहे कि कोविड-19 की दूसरी लहर आएगी।
पॉल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने 17 मार्च को दूसरी लहर के उभरने के बारे में देश को दहशत उत्पन्न किए बिना बता दिया था और कहा था कि हमें इससे लडऩा होगा।
उन्होंने कहा कि हमने दहशत उत्पन्न नहीं की थी, अन्य देशों ने कई उच्चतम स्तर क सामना किया है, आखिरकार यह एक महामारी है।
17 करोड़ में से एक-तिहाई निर्यात
कोरोना वैक्सीन को विदेश भेजने से जुड़े प्रश्न को बीजेपी ने बेवकूफाना करार दिया है।
पार्टी ने अपनी एक फैक्टशीट में यह जवाब दिया है।
कहा है- 17 करोड़ डोज भारतीयों को दे दिए जा चुके हैं, जबकि इसका महज एक-तिहाई हिस्सा ही निर्यात किया गया है।
वैक्सीन की कमी पर आलोचना की शिकार शिकार भाजपा यह फैक्टशीट पलटवार के तौर पर लेकर आई है।
दस्तावेज वैक्सीन निर्यात पर सवाल उठाने वालों के बुद्धिविवेक पर सवाल करता है।
फैक्ट शीट में बताया गया, काश लोगों के पास बेहतर आईक्यू होता।
यही नहीं, डॉक्यूमेंट के जरिए किसानों के आंदोलन, केरल व तुमिलनाडु में विपक्ष की रैलियों को कोरोना केसों के आए उछाल के लिए दोषी ठहराया गया। हाईकोर्ट की फटकार
वैक्सीन है नहीं और कॉलर ट्यून पर कह रहे टीका लगवा लो
लोगों से टीका लगवाने का अनुरोध करने वाली मोबाइल डायलर ट्यून पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई।
जस्टिस विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने कहा, लोग जब कॉल करते हैं तो, हमें नहीं पता कि आप कितने दिनों से एक परेशान करने वाला संदेश सुना रहे हैं कि लोगों को टीका लगवाना चाहिए, जबकि आपके (केंद्र सरकार) पास पर्याप्त टीका नहीं है।
पीठ ने कहा कि आप लोगों का टीकाकरण नहीं कर रहे हैं, लेकिन आप फिर भी कह रहे हैं कि टीका लगवाएं।
कौन लगवाएगा टीका, जबकि टीका ही नहीं है।
इस संदेश का मतलब क्या है। सरकार को इन बातों में नया सोचने की जरूरत है।
फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन के पास बात करने का वक्त नही
देश में वैक्सीन की कमी को दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने पहली बार कहा है कि वह जरूरतों को पूरा करने के लिए तीन वैश्विक वैक्सीन उत्पादक- फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन से बातचीत कर रही है।
केंद्र का कहना है कि ऐसा सप्लाई को जल्द से जल्द हासिल करने के लिए किया जा रहा है।
लेकिन तीनों ही कंपनियां पहले ही कह चुकी हैं कि वे किसी भी चर्चा के लिए 2021 की तीसरी तिमाही में ही तैयार हो पाएंगे, यानी अभी उनकी सप्लाई चेन में भारत को शामिल करना संभव नहीं है।
केंद्र सरकार ने कहा था कि भारत में इसी साल अगस्त से दिसंबर के बीच दो अरब से ज्यादा वैक्सीन उपलब्ध हो सकती है।
घर-घर टीकाकरण संभव नहीं
टीकाकरण अभियान के घर-घर शुरू करने को असंभव करार देते हुए एनके अरोड़ा ने कहा कि कोविड वैक्सीन के साथ घर-घर टीकाकरण संभव नहीं है क्योंकि रिएक्शन की संभावना अधिक होती है।
जहां कहीं भी या जिनमें किसी तरह का रिएक्शन होता है तो उन्हें तत्काल मेडिकल मदद की जरुरत होती है।