बीजिंग: चीन और भारत को दुनिया में दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं और भारी आबादी वाले देशों के रूप में, महामारी को रोकने और नियंत्रित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए, जो कि न केवल अपने स्वयं के लोगों के लिए, बल्कि सारी दुनिया के लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण से भी संबंधित है।
इस समय भारत में महामारी की स्थिति गंभीर है और चिकित्सा संसाधनों की सख्त जरूरत है।
इसी महत्वपूर्ण क्षण में चीन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भारत को सहायता देने की पेशकश करने की पहल की।
हालांकि, कुछ भारतीय मीडिया और राजनेता अभी भी पूर्वाग्रहों पर जोर देते हुए कहते हैं कि भारत को चीनी सहायता के पीछे षड्यंत्र से सावधान रहना चाहिए और वे भी कुछ पश्चिमी बलों का अनुसरण कर अफवाहों का फैलाव करते हैं।
ऐसा विचार न केवल तथ्यों के अनुरूप नहीं है, बल्कि भारत में महामारी का विरोध करने के लिए भी बेहद हानिकारक है।
प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित देशों को सहायता देना चीन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को संभालने में अपनाया गया पारंपरिक सिद्धांत है।
चीन ने बिना किसी पूर्वशर्त के भारत को महामारी-रोधी सहायता देने की पहल की।
चीन ने किसी राजनीतिक उद्देश्य के बिना ऐसा किया है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय संकटों से निपटने में चीन हमेशा यह काम किया करता है।
दुनिया की दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं और एक अरब आबादी वाले देशों के रूप में, चीन और भारत दोनों को महामारी के खिलाफ लड़ाई में सहयोग करना चाहिये, इससे दुनिया भर में महामारी की रोकथाम करने और दुनिया में आर्थिक रिकवरी करने के लिए लाभदायक है।
वर्तमान में, भारत महामारी की दूसरी लहर से प्रभावित है।
भारत के लिए अकेले अपनी ताकत से महामारी के प्रसार से निपटना मुश्किल है।
एक तरफ, इसे सख्त नियंत्रण और वैज्ञानिक तरीके महामारी की रोकथाम करनी चाहिए, दूसरी ओर इसे तत्काल अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने और महामारी को नियंत्रित करने के लिए जल्द से जल्द सभी उपाय करने की जरूरत, अन्यथा इससे अधिक मौतें और अधिक आर्थिक नुकसान होगा।
वायरस और टीके की कोई भी राजनीतिक विशेषता नहीं है।
किसी भी जिम्मेदार सरकार को मानव स्वास्थ्य और जीवन सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए, और राजनीतिक शोर से अंतर्राष्ट्रीय महामारी विरोधी सहयोग में हस्तक्षेप नहीं करने देना चाहिए।
वर्तमान में, किसी वैचारिक दृष्टिकोण से अमेरिका न केवल महामारी के खिलाफ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में बाधा डालता है, बल्कि चीन के खिलाफ बदनाम करने के प्रयास में अफवाहें भी बनाता है।
उधर, भारत में भी कुछ व्यक्तियों ने अमेरिका का साथ देते हुए सच्चाइयों को छिपाकर यह दावा किया कि मोदी सरकार को कमजोर करने के लिए चीन ने जैविक हथियार के रूप में वायरस का प्रयोग किया है।
लेकिन किसी भी निष्पक्ष और ठंडे दिमाग वाले व्यक्ति के लिए सच्चे और झूठे में अंतर करना मुश्किल नहीं है।
हम जानते हैं कि अमेरिका सबसे मजबूत जैव रासायनिक प्रौद्योगिकी अनुसंधान वाला देश है।
अमेरिका ने अफ्रीका, मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और यूक्रेन सहित 25 देशों और क्षेत्रों में 200 से अधिक जैविक प्रयोगशालाएं स्थापित की हैं।
इनमें से कुछ प्रयोगशालाओं के नजदीक क्षेत्रों में किसी संक्रामक रोगों का प्रकोप हुआ।
यदि न्यू कोरोना वायरस वास्तव में एक निश्चित देश की मानव निर्मित परियोजना से आया है, तो सबसे बड़ा संदिग्ध देश कौन है? वह कौन है, जिसके पास इस वायरस को बनाने की असली मंशा और क्षमता है?
वर्तमान में, विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ समूह के आधिकारिक निष्कर्ष के अनुसार, न्यू कोरोना वायरस प्रकृति से आता है, और यह एक प्रयोगशाला रिसाव से आने की बेहद संभावना नहीं है।
ऐसे समय जब महामारी की नई लहर चल रही है, चीन और भारत, जो महामारी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, को अपने पूर्वाग्रहों को त्यागना चाहिए और महामारी के खिलाफ लड़ाई में सहयोग करना चाहिए, ताकि दुनिया में आर्थिक रिकवरी जल्द से जल्द संपन्न हो सके।
फिलहाल चीन वैक्सीन का उत्पादन बढ़ा रहा है और चीनी कंपनियों ने कई देशों के साथ वैक्सीन का सहयोग शुरू किया है।
हाल ही में, चीन के सिनोफार्म के कोविड-19वायरस वैक्सीन को डब्ल्यूएचओ द्वारा आपातकालीन उपयोग सूची में शामिल किया गया है, जिससे चीनी कंपनियों के वैक्सीन अनुसंधान और विकास का गुणवत्ता स्तर साबित है।
चीनी कंपनियों ने बेल्ट एंड रोड से संबंधित देश जैसे इंडोनेशिया, ब्राजील, संयुक्त अरब अमीरात, मलेशिया, पाकिस्तान और तुर्की सहित कई देशों के साथ टीकों का संयुक्त उत्पादन भी शुरू किया है।
उधर भारत का सीरम इंस्टीट्यूट दुनिया में सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है।
चीन और भारत के बीच वैक्सीन का उत्पादन और विकास करने के क्षेत्र में व्यापक संभावनाएं हैं।
वर्तमान में, भारत में हर दिन कोई तीन चार लाख नए पुष्ट मामले आ रहे हैं और मौतों की संख्या में वृद्धि जारी है।
तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों को पूर्ण रूप से लॉकडाउन लगाना पड़ा है।
ऐसे वक्त परफिर भी उन राजनीतिक पूर्वाग्रहों, जो तथ्यों से मेल नहीं खाते हैं, पर डटा रहकर चीन-भारत सहयोग को बाधाएं डालने और यहां तक अमेरिका के झूठों का प्रसार करने सेभारत के बुनियादी हितों के अनुकूल नहीं है।
(साभार : चाइना मीडियाग्रुप, पेइचिंग)