इस तरह SEL की मदद से बच्चों में विकसित हो रहा आत्मसम्मान और आत्मविश्वास…

सरकारी स्कूलों (Government Schools)के बच्चों के अंदर सोशल इमोशनल लर्निंग (SEL) के कौशल को विकसित करने के उद्देश्य से वर्ष 2022 में झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद और झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के सहयोग से प्रोजेक्ट सम्पूर्णा के तहत हर्ष जोहार पाठ्यचर्या को लागू किया गया था।

Central Desk

Ranchi Social Emotional Learning: सरकारी स्कूलों (Government Schools)के बच्चों के अंदर सोशल इमोशनल लर्निंग (SEL) के कौशल को विकसित करने के उद्देश्य से वर्ष 2022 में झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद और झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के सहयोग से प्रोजेक्ट सम्पूर्णा के तहत हर्ष जोहार पाठ्यचर्या को लागू किया गया था।

इसका उद्देश्य छात्रों के भीतर आवश्यक SEL कौशल (सहानुभूति, आलोचनात्मक सोच, आत्म-सम्मान, भावनात्मक लचीलापन, इतियादी) का विकास करना है, ताकि बच्चों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के प्रति भाव विकसित हो।

विद्यार्थियों को इस पाठ्यचर्या से लाभ मिला

ख़ास तौर पर कक्षाओं में हाशिये पर रहने वाले विद्यार्थी, जिन्हें तनाव या किसी कार्य को करने की हमेशा अनिक्षा रहती हो, ऐसे विद्यार्थियों को इस पाठ्यचर्या से लाभ मिला है। वर्तमान में 121 सरकारी स्कूलों, 80 मुख्यमंत्री उत्कृष्ट विद्यालयों और 41 कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi) बालिका आवासीय विद्यालयों में यह पाठ्यचर्या लागू है, जहां इसके सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहे है।

रांची के TVS मुख्यमंत्री उत्कृष्ट विद्यालय के स्कूल प्रबंधक SM ओमाइर बताते हैं कि हर्ष जोहार पाठ्यचर्या बच्चों को मूल रूप से खुश महसूस कराती हैं और सरल एवं प्रभावी गतिविधियों की मदद से आनंदमय सीखने में मदद करती हैं। यह सामाजिक, भावनात्मक और रचनात्मक सीखने के लिए उपयुक्त पाठ्यचर्या है। इससे सीखने, भाग लेने और शारीरिक गतिविधियों (Physical Activities) में उत्कृष्टता हासिल करने का भी मौका मिलता है।”

कक्षा में अलग-थलग रहती थी ख़ुशी, अब उत्साहित होकर ग्रहण कर रही है शिक्षा

ख़ुशी कुमारी KGBV, निरसा, धनबाद में पढ़ती है। इस स्कूल में मुख्य रूप से SC, ST, OBC और समाज के अन्य सामाजिक रूप से वंचित समूहों से संबंधित बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे है। ख़ुशी का शैक्षणिक प्रदर्शन काफी बेहतर है और लगातार शिक्षकों द्वारा उसकी सराहना की जाती है लेकिन कक्षा में अलग-थलग रहने और दोस्त न बनाने के कारण साथियों द्वारा उसे धमकाया जाता था। इस वजह से ख़ुशी कम आत्मविश्वास महसूस करती थी। कक्षा में उत्तर देने से हमेशा बचती थी। परीक्षा ने उसे तनावग्रस्त कर दिया था और वह अक्सर बुखार के कारण बीमार पड़ जाती थी।

‘सुनने के महत्व’ सत्र में ख़ुशी पहली बार शामिल हुई

हर्ष जोहार पाठ्यचर्या के तहत स्कूल में आयोजित हुए ‘सुनने के महत्व’ सत्र में ख़ुशी पहली बार शामिल हुई। उसके दोस्तों ने उसे अपने समूह में बैठने के लिए आमंत्रित किया और वह भाग लेने के लिए कक्षा में पहली बार आगे की बेंच में बैठी। उसने अपना हाथ उठाया और सवालों के जवाब भी देने लगी। यहां हर्ष जोहार से संबंधित शिक्षकों द्वारा ख़ुशी को लगातार प्रोत्साहित किया गया। जिसका नतीजा है की आज खुसी फर्स्ट बेंच में बैठती है और अपने दोस्तों के साथ भी समय बिताती है। ख़ुशी अब पहले से ज्यादा उत्साहजनक नजर आती है।

गिरिडीह की सोनिका कुमारी को बचपन में हुई एक दुर्घटना से उत्पन्न अनोखी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसने शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह के उसे घाव दिए। सामाजिक मानदंडों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों से हतोत्साहित होने के कारण, वह असुरक्षा से जूझती रही और उसे शिक्षकों और साथियों के साथ आत्मविश्वास से संवाद करना चुनौतीपूर्ण लगने लगा था। सोनिका लैंगिक रूढ़िवादिता और बाहरी अपेक्षाओं के बोझ से जूझ रही थी, जो उसके शैक्षिक और व्यक्तिगत विकास में बाधा बन रही थी। इस दुर्घटना ने उसके संघर्षों को और बढ़ा दिया, जिससे उसकी असुरक्षा की भावनाएं और भी बढ़ गईं।

हर्ष जोहार सत्र ने उन्हें सामाजिक और भावनात्मक रूप से जागरूक वातावरण से परिचित कराया, जिससे उन्हें लैंगिक रूढ़िवादिता को चुनौती देने की प्रेरणा मिली। इन सत्रों के बाद सोनिका ने अपने जीवन में आए सकारात्मक बदलावों के बारे में आत्मविश्वास (Self-confidence) से अपने सहपाठियों को संबोधित करते हुए अपनी आवाज उठाई।

उन्होंने अन्य लड़कियों को प्रेरित करने और उनका उत्थान करने के लिए अपने शब्दों का उपयोग करते हुए कविता लिखने का जुनून विकसित किया। आज सामाजिक सामाजिक भावनात्मक कौशल से वे दूसरो पर भी सकारात्मक (Positive) प्रभाव डाल रही है।

चतरा के हंटरगंज स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय की सातवीं कक्षा की साधारण छात्रा प्रीति कुमारी को अपनी शैक्षणिक यात्रा (Educational Trip) में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा। एक पिछड़े इलाके में आर्थिक रूप से तनावग्रस्त परिवार में रहते हुए वह विनम्र स्वभाव से संघर्ष करती रही, जिससे स्कूल की गतिविधियों में उसकी भागीदारी ना के बराबर थी। वे कक्षा में हमेशा छिपकर रहना पसंद करती थी। पाठ्येत्तर गतिविधियों में भाग लेने में हमेशा उसकी अनिक्षा बाधा बन जाती थी। सम्पूर्णा कार्यक्रम ने उनके जीवन को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उसकी क्षमता को पहचानते हुए कार्यक्रम के शिक्षकों ने उसे उसके नाम से सबके सामने संबोधित करना और महत्त्व देना शुरू किया। धीरे-धीरे उसे विभिन्न गतिविधियों में शामिल किया। कुछ ही समय में, प्रीति ने सहजता में वृद्धि के संकेत दिखाए और न केवल गतिविधियों में बल्कि समूह बातचीत में भी शामिल होना शुरू कर दिया।

पाठ्यचर्या के प्रभाव से प्रीती का आत्मविश्वास बढ़ता गया और अब वह स्कूल की गतिविधियों के लिए खुद को नामांकित करने में झिझकने से लेकर सुबह की प्रातःकालीन सभाओं का नेतृत्व भी कर रही है।

प्रोजेक्ट सम्पूर्णा और हर्ष जोहार पाठ्यक्रम ने न केवल शिक्षकों को अपने छात्रों की भावनात्मक जरूरतों को समझने और संबोधित करने के लिए मूल्यवान उपकरणों से सुसज्जित किया है, बल्कि एक अधिक सहानुभूतिपूर्ण (Sympathetic) और सहायक सीखने के माहौल को भी बढ़ावा दिया है।

हर्ष जोहार की गतिविधियों और सत्रों के माध्यम से शिक्षक छात्रों के सामने आने वाली भावनात्मक चुनौतियों से परिचित हो गए हैं, और इन चुनौतियों से निपटकर स्वयं में आत्मविश्वास बढ़ाने में वे बच्चों की सहायता करते हैं। इस बदलाव ने छात्रों को अपनी भावनाओं और चिंताओं को स्वतंत्र (Independent) रूप से व्यक्त करने और साथियों के बीच विश्वास स्थापित करने के लिए सशक्त बनाया है।