रांची: झारखंड विधान सभा शीतकालीन सत्र के चौथे दिन मंगलवार को भीड़ हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग निवारण विधेयक पारित हो गया है।
संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम ने विधेयक को सदन में प्रस्ताव रखा, जिसपर स्पीकर ने मतदान कराया।
विधेयक पर चर्चा के दौरान भाजपा विधायकों ने जमकर हंगामा किया। भाजपा विधायक वेल तक पहुंचकर हंगामा करने लगे।
इस दौरान भाजपा विधायकों ने सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप भी लगाया। नारेबाजी करते हुए सदन से बाहर निकल गए। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो ने सदन की कार्यवाही बुधवार सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।
इसके पूर्व विधानसभा की कार्यवाही शुरू होते ही भाजपा विधायकों ने जेपीएससी मुद्दे को लेकर जमकर हंगामा किया। साथ ही नारा लगाते हुए वेल तक पहुंच गये थे।
विपक्ष के विरोध को देखते सदन में स्पीकर ने कहा कि जेपीएससी मुद्दे पर सदन के नेता ने सरकार का पक्ष रख दिया है, ऐसे में बार-बार इसी तरह का विरोध करना सही नहीं है।
चौथे दिन ध्यानाकर्षण की सूचना देते समय आवेश में आकर भाजपा विधायक मनीष जायसवाल ने सदन के अंदर प्रोसिडिंग पेपर फाड़ दिया, जिसके बाद सत्ता पक्ष ने कार्रवाई की मांग की।
स्पीकर ने मनीष जायसवाल को सत्र के बाकी दिन की कार्यवाही में भाग लेने से निलंबित कर दिया। मनीष जायसवाल के सदन से निलंबन के बाद भाजपा के सभी विधायक विरोध करने लगे।
सभी विधायक सदन के अंदर प्रोसिडिंग पेपर फाड़ने लगे। साथ ही नारेबाजी करने लगे कि मनीष जायसवाल के निलंबन को स्पीकर वापस लें।
संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने भाजपा के सभी विधायकों पर कार्रवाई की मांग की। मनीष जायसवाल स्पीकर के आदेश के बाद भी सदन से बाहर नहीं गए तो स्पीकर ने मार्शल को आदेश दिया कि विधायक को मार्शल आउट करें।
सभी मार्शल ने विधायक को सदन से बाहर करने लगे तो इस दौरान मनीष जायसवाल और मार्शल के बीच नोकझोंक भी हुई। इसके बाद राज्य सरकार ने मॉब लिंचिंग रोकने को लेकर विधेयक पास किया।
उल्लेखनीय है कि हेमंत सरकार ने मॉब लिंचिंग पर लगाम लगाने के लिए भीड़ हिंसा एवं भीड़ लिंचिंग निवारण विधेयक का मसौदा तैयार किया था।
सदन में मंगलवार को यह विधेयक पारित हो गया। तैयार मसौदे के अनुसार मॉब लिंचिंग के दोषी को सश्रम आजीवन कारावास और 25 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकेगा।
इसके तहत दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समूह द्वारा धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, आहार, व्यवहार, लैंगिक, राजनैतिक संबद्धता, नस्ल अथवा किसी अन्य आधार पर किसी को लिंच करने के लिए भीड़ को उकसाने का आरोप सिद्ध होने पर इसके तहत सजा मिल सकती है। राज्य सरकार एक नोडल अधिकारी नियुक्त करेगी।
डीजीपी लिंचिंग की रोकथाम की निगरानी और समन्वय के लिए अपने समकक्ष के अधिकारी को राज्य समन्वयक नियुक्त करेंगे। इसके नोडल अधिकारी कहलायेंगे।
नोडल अधिकारी जिलों में स्थानीय खुफिया इकाइयों के साथ माह में एक बार नियमित रूप से बैठक करेंगे। इसका उद्देश्य अतिरिक्त सतर्कता और भीड़ द्वारा हिंसा या लिंचिंग की प्रवृत्तियों के अस्तित्व की निगरानी करना है।
नोडल अधिकारी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म या किसी अन्य माध्यमों से आपत्तिजनक सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए भी कदम उठायेंगे।
हर जिले में एसपी या एसएसपी समन्वयक होंगे। वह डीएसपी के माध्यम से हिंसा और लिंचिंग रोकने के उपाय पर काम करेंगे। गवाह का नाम और पता गोपनीय रखा जायेगा।
पीड़ित अगर चाहेंगे, तो उन्हें नि:शुल्क कानूनी सहायता दी जायेगी। गवाह का संरक्षण किया जायेगा। पीड़ित के नि:शुल्क उपचार की व्यवस्था भी की जायेगी।
लिंचिंग का अपराध सिद्ध होने पर शुरुआत में एक साल का कारावास हो सकता है, जिसे तीन साल के लिए बढ़ाया जा सकता है। जुर्माना राशि भी एक लाख से तीन लाख तक हो सकती है।
दोषी का कृत सामान्य से ज्यादा होने पर जुर्माना तीन से पांच लाख रुपये तथा एक से दस वर्ष तक की सजा हो सकती है। लिंचिंग के दौरान पीड़ित की मौत होने पर सश्रम आजीवन कारावास के साथ पांच लाख तक का जुर्माना होगा। जुर्माने की राशि 25 लाख तक बढ़ायी जा सकती है।