नई दिल्ली : Supreme Court ने बुधवार को केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय से अपनी अधिसूचनाओं पर फिर से विचार करने को कहा, जिसमें कहा गया है कि हल्के मोटर वाहन (LMV) लाइसेंस धारकों (license holders) को एलएमवी श्रेणी के परिवहन वाहन चलाने के लिए अलग से पुष्टि की जरूरत नहीं है।
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ (CJI D.Y. Chandrachur) की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, पी.एस. नरसिम्हा, पंकज मिथल और मनोज मिश्रा शामिल थे।
संविधान पीठ पिछले साल मार्च में मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (Mukund Dewangan vs. Oriental Insurance Company Limited) के मामले में दिए गए पहले के फैसले की शुद्धता पर संदेह करते हुए तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए एक संदर्भ पर सुनवाई कर रही थी।
2017 के मुकुंद देवांगन फैसले में कहा गया था कि परिवहन लाइसेंस की जरूरत सिर्फ मध्यम/भारी माल और यात्री वाहनों के मामले में उत्पन्न होगी, यह कहते हुए कि किसी अन्य वाहन को किसी भी अलग समर्थन की जरूरत नहीं होगी, भले ही उनका उपयोग वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए किया गया हो।
दूसरे शब्दों में, एलएमवी लाइसेंस धारक को ई-रिक्शा, कार, वैन आदि जैसे हल्के मोटर वाहनों के व्यावसायिक उपयोग के लिए किसी अलग समर्थन की जरूरत नहीं होगी।
केंद्र ने मोटर वाहन नियमों को सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त फैसले के अनुरूप लाने के लिए अधिसूचनाएं जारी कीं और उनमें संशोधन लाए।
2017 के फैसले ने एलएमवी चलाने का लाइसेंस रखने वाले लोगों द्वारा चलाए जा रहे परिवहन वाहनों से जुड़े दुर्घटना मामलों में बीमा कंपनियों द्वारा दावों के भुगतान पर विभिन्न विवादों को जन्म दिया और बीमा कंपनियों के कहने पर मामला फिर से गरमा गया।
न्यायमूर्ति यू.यू. ललित की अध्यक्षता वाली पीठ मार्च 2022 में (अब सेवानिवृत्त) ने माना कि शीर्ष अदालत ने 2017 के मुकुंद देवांगन के फैसले में मोटर वाहन अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर ध्यान नहीं दिया था और इस मुद्दे पर पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा फिर से विचार करने की जरूरत है।
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने बुधवार को टिप्पणी की कि विचाराधीन मुद्दा स्पष्ट रूप से “कानून की व्याख्या के बारे में” नहीं है, बल्कि इसमें “कानून का सामाजिक प्रभाव” भी शामिल है।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कही ये बात
पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी (Attorney General R. Venkataramani) से कहा कि वे देवांगन मामले में फैसले के आधार पर देशभर में वाणिज्यिक वाहन चलाने वाले लाखों लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार करें, क्योंकि इसका असर उनकी आजीविका पर पड़ेगा।
पीठ ने कहा, “हमें इस स्तर पर फैसले पर पुनर्विचार क्यों करना चाहिए? यदि आप सोच रहे हैं कि फैसला वैधानिक स्थिति के अनुरूप नहीं है, तो यदि आप इसमें संशोधन करने के इच्छुक हैं, तो आप इसमें संशोधन करें और कानून की संरचना बदलें।”
संविधान पीठ ने कहा कि यह मामला वास्तव में कोई “संवैधानिक मुद्दा” नहीं उठाता, बल्कि इसमें “शुद्ध वैधानिक मुद्दा” शामिल है।
इसमें कहा गया कि “सामाजिक नीति के मुद्दों” पर संविधान पीठ द्वारा विचार नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह मुद्दों को सख्ती से कानून के अनुसार निपटाता है।
एलएमवी ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति कानूनी रूप से…
सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि केंद्र सरकार को संपूर्ण स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए और फिर उचित निर्णय लेना चाहिए। केंद्र को कानून की स्थिति का आकलन करने के लिए दो महीने की अवधि दी गई है, जहां एलएमवी ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति कानूनी रूप से हल्के मोटर वाहन वर्ग के परिवहन वाहन को चलाने का हकदार है, जिसका वजन 7,500 किलोग्राम से अधिक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि कानून की मौजूदा हालत कानूनी तराजू को बीमा कंपनियों के पक्ष में मोड़ सकती है और संभावित निर्णय एलएमवी ड्राइविंग लाइसेंस रखते हुए हल्के परिवहन वाहन चलाने वाले लोगों को प्रभावित कर सकता है।