पटना: बिहार विधानमंडल दल की उपनेता चुनी गईं रेणु देवी ने मंत्रि परिषद् की भी शपथ ली है। ऐसा माना जा रहा है कि वे नीतीश कुमार मंत्रिमंडल में उप मुख्यमंत्री का दायित्व संभालेंगी।
यदि ऐसा होता है तो वे बिहार की पहली चयनित महिला उप मुख्यमंत्री होंगी। हांलाकि इससे पहले राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, पर वे अपने पति लालू प्रसाद यादव के जेल जाने से पैदा हुई परिस्थितियों के चलते नामित की गई थीं।
सक्रिय राजनीति में रहकर, संगठन के बहुत सारे दायित्वों को निभाते हुए, 25 साल से चुनावी राजनीति का अनुभव पाने के बाद इस मुकाम तक पहुंचने वाली वे पहली महिला हैं।
कहा यह भी जा रहा है कि नीतीश सरकार के गठन में महिला मतदाताओं की बड़ी भूमिका है। नरेन्द्र मोदी सरकार की नीतियों और नीतीश सरकार की शराब बंदी की नीति को महिलाओं ने खुलकर सराहा है।
ऐसे में बिहार की महिलाओं के प्रतिनिधि के तौर पर रेणु देवी सबसे सशक्त चेहरा बनकर सामने आई हैं।
विचारधारा और पढ़ाई
रेणु देवी पर बाल्यकाल से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा का प्रभाव रहा है। उनकी माता जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महिला ईकाई राष्ट्र सेविका समिति से जुड़ी थीं।
इसका प्रभाव रेणु देवी के मन पर था। बिहार की पिछड़ी जातियों में शामिल नोनिया समाज से आने वाली रेणु देवी पढ़ाई के दौरान अग्रणी रहीं और वे कला संकाय से स्नातक हैं।
रेणु देवी अंग्रेजी-हिंदी के साथ-साथ बांग्ला भाषा की भी अच्छी जानकार हैं।
सार्वजनिक जीवन
1 नवम्बर, 1959 को जन्मी रेणु देवी का सामाजिक जीवन में पदार्पण 1981 में हुआ। उन्होंने चम्पारण (बेतिया-मोतिहारी) और उत्तर बिहार को कार्यक्षेत्र बनाकर स्वयं सहायता समूह बनाकर महिलाओं के हक की लड़ाई शुरू की।
फिर राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के दौरान वे 1988 में दुर्गावाहिनी की जिला संयोजक बनीं। उस आंदोलन के दौरान वे 500 महिला कार्यकर्ताओं के साथ आंदोलन करते हुए गिरफ्तारी दी और जेल भी गईं।
1989 में वे भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष चुनी गईं। 1990 में तिरहुत प्रमंडल (मुज्जफरपुर, मोतिहारी, बेतिया, वैशाली, सीतामढ़ी, शिवहर) में महिला मोर्चा की प्रभारी बनीं।
संगठन की समझ
साल 1991 में भाजपा की प्रदेश महिला मोर्चा की महामंत्री बनीं। 1993 में भाजपा बिहार प्रदेश महिला मोर्चा की अध्यक्ष चुनी गई। 1996 में फिर महिला मोर्चा की अध्यक्ष बनीं। 2014 में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुनी गईं।
कहा जा सकता है कि वे भारतीय जनता पार्टी के संगठन से जुड़ी और उसकी समझ रखने वाली नेता हैं। उन्होंने बिहार में नोनिया बिंद मल्लाह तुरहा आदि जाति को पार्टी के विचारधारा से जोड़ा।
चुनावी राजनीति की विजेता
चुनावी राजनीति में शामिल होते हुए वे पहली बार 1995 में बेतिया जिले के नौतन विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ीं पर सफलता हाथ न लगी। सन् 2000 में बेतिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ी और जीती।
2005 फरवरी व नवम्बर में बेतिया से फिर विधायक बनीं। 2007 में बिहार की कला संस्कृति मंत्री बनीं। 2010 में फिर भी विधायक बनीं। 2015 में कांग्रेस के मदन मोहन तिवारी से मात्र 2 हजार वोट से चुनाव हार गई।
हाल ही में सम्पन्न विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर कांग्रेस के ही मदन मोहन तिवारी हराकर पिछली हार की कसर निकाल दी।