नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि जमीन वास्तविक रूप में दुकान के तौर पर बेची गई है तो वाणिज्यिक तौर पर बदली गई आवासीय भूमि को अनधिकृत बताकर सीलिंग जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है।
चीफ जस्टिस एसए बोबडे की पीठ ने यह टिप्पणी दिल्ली के एक मार्केट वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
याचिका में कहा कि कई दुकानों को निगरानी समिति ने इस आधार पर सील कर दिया कि लोगों ने अनधिकृत तौर पर आवासीय को वाणिज्यिक में बदल दिया, जबकि इनके मालिकों ने इनकी खरीद वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए ही की थी।
सीजेआई जस्टिस बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि यदि यह तथ्य है कि परिसरों को दुकान के तौर पर बेचा गया था तो हमें कोई वजह नहीं दिखती है कि इनकी सीलिंग जारी रहनी चाहिए।
याचिकाकर्ता ने कहा कि इस आधार पर सीलिंग की कार्रवाई की गई कि हकीकत में आवासीय यूनिटों की खरीद कर उन्हें अनधिकृत तौर पर वाणिज्यिक परिसरों में बदल दिया गया जबकि ऐसा नहीं है।
इन परिसरों की खरीद दुकान के तौर पर इस्तेमाल के लिए की गई थी।
इस पर पीठ ने कहा कि हम तदनुसार ऐसा निर्देश देना उचित समझते हैं कि सभी ऐसे परिसरों की सूची तैयार की जाए जोकि वास्तविक रूप में दुकान के तौर पर खरीदे गए और अब आवासीय परिसरों को अनधिकृत तौर पर वाणिज्यिक परिसरों में बदलने के आरोप में सील कर दिए गए हैं।
पीठ ने कहा कि मामले में न्याय मित्र के तौर पर सहायता कर रहे वकील एडीएन राव इन परिसरों की वास्तविक खरीद संबंधी सभी दस्तावेज की जांच करेंगे।
दक्षिण दिल्ली नगर निगम की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजीव सेन ने पीठ से खरीद के समय परिसरों की वास्तविक स्थिति दिखाने के लिए दस्तावेज मांगने की अनुमति मांगी।
इस पर पीठ ने एसडीएमसी को मंजूरी दे दी।
यह मामला एसोसिएशन के सदस्यों की आजीविका को प्रभावित करने वाला है, ऐसे में न्याय मित्र अपनी रिपोर्ट चार हफ्ते के अंदर दाखिल करें।
इससे पहले कोर्ट ने दिल्ली में अनधिकृत निर्माण की पहचान और सील करने के लिए अपनी 2006 में गठित निगरानी समिति बरकरार रखने का आदेश दिया था।
समिति में चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार केजी राव, पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण एवं रोकथाम प्राधिकरण के चेयरमैन भूरे लाल और मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) सोम झिंगान हैं।