नई दिल्ली: उच्च न्यायालयों में जजों की बढ़ती रिक्तियों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा नामों को मंज़ूरी देने के तुरंत बाद केंद्र सरकार को नियुक्तियां करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट संकट के दौर में हैं और इनमें 40 फीसदी रिक्तियां बनी हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि सरकार को कॉलेजियम की सिफारिशों पर कोई आपत्ति है, तो उसे आपत्ति के विशिष्ट कारणों के साथ नामों को वापस भेजना चाहिए।
एक बार सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने नामों को दोहराया है तो केंद्र को तीन से चार हफ्ते के अंदर नियुक्ति करनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि आईबी को उच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिश की तारीख से 4 से 6 सप्ताह में अपनी रिपोर्ट इनपुट केंद्र सरकार को सौंपने चाहिए।
यह उचित होगा कि केंद्र सरकार राज्य सरकार से विचारों की प्राप्ति की तारीख और आईबी से रिपोर्ट इनपुट से आठ से 12 सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट में फाईलों को भेजे।
इसके बाद सरकार के लिए यह सही होगा कि इन पर तुरंत नियुक्ति करने के लिए आगे बढ़े और निस्संदेह अगर सरकार के पास उपयुक्तता या सार्वजनिक हित में कोई आपत्ति है, तो इसी समय की अवधि के भीतर आपत्ति के विशिष्ट कारणों को दर्ज कर इसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास वापस भेज सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि हाईकोर्ट में 20 फीसदी से ज्यादा रिक्तियां है तो पूर्व जजों को अस्थायी रूप से नियुक्त करने के लिए मुख्य न्यायाधीश संविधान के अनुच्छेद 224ए के तहत राष्ट्रपति से आग्रह कर सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने यह व्यवस्था लोकप्रहरी की जनहित याचिका पर मंगलवार को दी।
पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 224ए का सहारा लेना उचित नहीं है क्योंकि अस्थायी नियुक्तियां स्थायी नियुक्तियों का विकल्प नहीं हो सकती।
इसलिए बेहतर होगा कि हाईकोर्ट अनुच्छेद 224 ए के तहत नियुक्तियां तभी शुरू करें जब वे स्थायी नियुक्तियों के लिए प्रक्रिया शुरू कर चुके हों।