News Aroma Desk : 15 अक्टूबर से शुरू हुई नवरात्र (Navratri) का 20 अक्टूबर को षष्ठी यानी छठा दिन है। आज यानी शुक्रवार को मां दुर्गे के कात्यायनी (Katyayani) रूप की पूजा-आराधना हो रही है।
देवी पुराण के अनुसार, आज के दिन 6 कन्याओं को भोज करवाना चाहिए। स्त्रियां आज के दिन स्लेटी यानी ग्रे रंग (Gray Color) की साड़ियां पहनती हैं। सबके लिए मां कात्यायनी की कृपा की आकांक्षा।
मां कात्यायनी के रूप की महिमा
मां कात्यायनी शुभ वर्णा हैं और स्वर्ण आभा से मंडित हैं। इनकी चार भुजाओं में से दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभय मुद्रा (Abhaya Mudra) में और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में स्थित है। बायें हाथ में ऊपर कर हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल है। इनका भी वाहन सिंह है।
पूजा के दौरान इस मंत्र का करें उच्चारण
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
संपूर्ण ब्रज की अधिष्ठात्री देवी यही माता थी। चीर हरण के समय माता राधा और अन्य गोपियां इन्हीं माता की पूजा करने गईं थीं। कात्यायनी माता का वर्णन भागवत पुराण 10.22.1 में भी है, श्लोक है: –
हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दत्रजकुमारिकाः । चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्च्चनव्रतम् ॥
मां कात्यायनी की पूजा का फल
हिंदू धर्मशास्त्र और योगशास्त्र (Hindu Theology and Yoga) के विशेषज्ञ बताते हैं कि नवरात्रि की षष्ठी के दिन साधक के मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है। उ
समें अनंत शक्तियों का संचार होता है। वह अब माता का दिव्य रूप देख सकता है। भक्त को सारे सुख प्राप्त होते हैं। दुख दारिद्र्य और पापों का नाश हो जाता है।
मां कात्यायनी की उत्पत्ति की कथा
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, कात्यायनी नाम की उत्पति के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। कत ऋषि के पुत्र महर्षि ’कात्य’ थे। महर्षि ’कात्यायन’ इन्हीं के वंशज थे।
चूंकि घोर तपस्या के बाद माता पार्वती / कात्यायनी की पूजा सर्वप्रथम करने का श्रेय महर्षि कात्यायन (Shreya Maharishi Katyayan) को जाता है। इसलिए इन माता का नाम देवी कात्यायनी पड़ा।