जयपुर: जिनके इरादे मजबूत होते हैं वे हमेशा अपना रास्ता खोज लेते हैं और यह बात भारतीय मुक्केबाज स्वीटी बूरा पर स्पष्ट रूप से लागू होती है।
2009 में अपने गृहनगर (हिसार) में कबड्डी खेलने वाली एकमात्र लड़की होने से लेकर, मुक्केबाजी को चुनने तक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने तक, स्वीटी ने निश्चित रूप से एक लंबा सफर तय किया है।
स्पोर्ट्स टाइगर की नई इंटरव्यू सीरीज “मिशन गोल्ड” पर बातचीत के दौरान उन्होंने अपने सफर के बारे में बताया।
मुक्केबाजी चुनने वाली एकमात्र लड़की के रूप में बड़ा होना थोड़ा मुश्किल था। लेकिन खेल के प्रति अटूट जुनून ने स्वीटी को आगे बढ़ाया।
हालाँकि, स्वीटी को एक इंजीनियर के रूप में देखना उनके पिता का सपना था, लेकिन उन्होंने वही चुना जिसके प्रति उनका जुनून था और उन्होंने इस क्षेत्र में नई ऊँचाईयां भी हासिल की।
मुक्केबाज बनने से पहले स्वीटी राष्ट्रीय स्तर की कबड्डी खिलाड़ी थीं। लेकिन उनके पिता ने एक बहुत ही खास कारण से उन्हें मुक्केबाजी के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने हसंकर वह कारण बताया जिसने उन्हें मुक्केबाजी के लिए प्रेरित किया और कहा, “मैंने मुक्केबाजी को इसलिए चुना क्योंकि मैं स्कूल में बहुत कम बात करती थी लेकिन हर बार जब चीजें गलत होती थीं, तो मैं इसे संभाल नहीं पाती थी। मैं कई बार अपने साथियों को समझाने की कोशिश करती थी, लेकिन फिर भी वे मुझे पलट कर जवाब देते थे तो भी मैं अपने आप को शांत रखने की कोशिश करती थी। लेकिन फिर भी वे नहीं समझते थे तो मैं उनपर मुक्के बरसाती थी।”
मुक्केबाजी के प्रति अपने प्यार को महसूस करने के बाद, 2009 में साई में एक ट्रायल दिया और एक प्रशिक्षित मुक्केबाज के खिलाफ पहले राउंड में हार गई और तब उनके भाई ने उन्हें यह कहकर चिढ़ाया कि, “दिखा दिए उसने दिन में तारे”।
इसके बाद फिर से उन्होंने हिम्मत जुटाई और अपने प्रतिद्वंद्वी को सिर्फ अपर कट पंच मारकर बाहर कर दिया और इस तरह, उन्होंने अपने मुक्केबाजी करियर की शुरुआत की।
अधिकांश एथलीटों की तरह, दो बार के एशियाई चैम्पियनशिप पदक विजेता के लिए महामारी का दौर कठिन रहा, हाल ही में 2021 एशियाई चैम्पियनशिप में उन्होंने दुबई में कांस्य पदक जीता था।
उन्होंने उस समय को याद किया और जब वे अकेले अभ्यास कर रही थीं और तैयारियों में जुटी हुई थीं, उन्होंने कहा, “हमने एशियाई चैम्पियनशिप 2021 के लिए अपने घरों में अभ्यास किया, हालांकि कैंप का आयोजन किया गया था लेकिन यह केवल ओलंपिक के लिए क़्वालीफाई किये हुए खिलाड़ियों के लिए था। शिविर में 5 लड़कियों ने भाग लिया, जबकि मेरे सहित 5 ने अपने घरों पर अभ्यास किया। हमें उम्मीद नहीं थी कि हम इस टूर्नामेंट में भाग लेंगे क्योंकि महामारी के कारण आने जाने वाली उड़ानों पर प्रतिबंध था। आखिरी समय में हमें अनुमति मिली और मैंने चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता।”
इस साल ओलंपिक क्वालीफिकेशन से ठीक पहले उन्हें निराशा का सामना करना पड़ा था। तब उन्होंने मुक्केबाजी छोड़कर कबड्डी में लौटने पर भी विचार किया।
उन्होंने कहा, “मैंने कैंप छोड़ दिया और वापस आ गई क्योंकि मुझे ओलंपिक क्वालीफाइंग में भाग लेने का मौका नहीं दिया गया। मैं यह सोचकर घर वापस आ गई थी कि अगर मुझे ओलंपिक क्वालीफिकेशन में भाग लेने का मौका ही नहीं मिला तो खेल को आगे जारी रखने का क्या फायदा? मैं विश्व और एशियाई लेवल पर खेल चुकी हूं और कई पदक जीते हैं। केवल एक चीज जो मेरे पास नहीं है वह है ओलंपिक पदक। अगर ऐसा ही था तो मैं कबड्डी खेलने के लिए भी तैयार थी।”
लेकिन इसके बाद भी, वह 2024 के पेरिस ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए काफी दृढ़ निश्चयी हैं और उन्होंने कहा, “मैं उनमें से हूं जो अपने सपनों को हासिल करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। मेरे पास 2024 के ओलंपिक की तैयारी के लिए अभी भी तीन साल और हैं और मैं निश्चित रूप से अगले ओलंपिक में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने की उम्मीद करती हूं।”
उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि उन्हें अपने साथी खिलाड़ियों पर बहुत गर्व है जो इस महीने के अंत में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे।
उन्होंने अपनी शुभकामनाएं भी दीं और कहा, “अगले महीने से टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रहे मुक्केबाजों को शुभकामनाएं। यह पहली बार है जब 5 भारतीय मुक्केबाज सीधे क्वार्टर फाइनल में उतरेंगे।”