Petition Related to Irregularity: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने याचिका दायर करने में देरी को लेकर कहा कि यह अहम फैक्टर है, लेकिन इसके आधार पर किसी शख्स को संपत्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला की अगुवाई वाली बेंच ने भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया (Land Acquisition Process) में कथित अनियमितता से जुड़ी याचिका को 21 साल की देरी के बाद स्वीकार किया है।
कोर्ट ने 13 दिसंबर को दिए फैसले में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने लगातार यह माना है कि संपत्ति का अधिकार संविधान में निहित है।
निष्पक्षता और मनमानी से बचने के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन किया जाना चाहिए, विशेष रूप से राज्य की ओर से अधिग्रहण के मामलों में।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने में देरी को अहम माना है, लेकिन कहा कि संपत्ति के अधिकार की रक्षा के लिए इस देरी को हम माफ करते हैं।
आर्टिकल 300A में निहित संपत्ति के अधिकार की रक्षा करने की जरुरत पर देरी को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है। कानूनी कार्यवाही में संतुलन बनाना जरूरी है।
चार अपीलों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया
व्यक्तिगत संपत्ति की रक्षा और उसे मान्य करने का अधिकार केवल देरी और निष्क्रियता के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।
शहरी सुधार ट्रस्ट की ओर से दायर चार अपीलों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इन अपीलों में राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसने राजस्थान शहरी सुधार अधिनियम के तहत भूमि मालिकों की जमीन के अधिग्रहण को रद्द कर दिया था।
यह मामला दो अलग-अलग भूमि अधिग्रहण से संबंधित है। जमीन राजस्थान के अलवर के नांगली कोटा भूमि और मूंगस्का में स्थित हैं। इन जमीनों का अधिग्रहण किया गया था। दोनों अधिग्रहण प्रक्रियाओं को भूमि मालिकों ने 1998 में राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के सामने मामला आया था कि क्या भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मालिकों की ओर से रिट याचिका दाखिल करने में देरी घातक थी? क्या RUI अधिनियम के तहत जारी अधिसूचनाएं प्रक्रियागत त्रुटियों के बावजूद वैध थीं? क्या नांगली कोटा भूमि के मुआवजे का निर्धारण कानूनी रूप से किया गया था? क्या RUI का पालन अधिग्रहण की वैधता के लिए अनिवार्य था?