Supreme Court Decision on Soren Family: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की Constitution Bench की ओर से सोमवार को सुनाए गए फैसले के बाद झारखंड में सियासी तौर पर रसूखदार सोरेन परिवार की मुसीबतें बढ़ेंगी।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन और उनकी बहू सीता सोरेन पर रिश्वतखोरी के अलग-अलग मामलों में मुकदमा चलना तय माना जा रहा है। शिबू सोरेन फिलहाल राज्यसभा के सांसद हैं, जबकि सीता सोरेन झारखंड विधानसभा (Jharkhand Assembly) में जामा क्षेत्र की विधायक।
शिबू सोरेन और उनकी पार्टी JMM के तीन अन्य तत्कालीन सांसदों शैलेंद्र महतो, सूरज मंडल और साइमन मरांडी पर 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को बचाने के लिए घूस लेकर वोट देने का आरोप था, जबकि सीता सोरेन पर 2012 में हुए झारखंड में राज्यसभा चुनाव में एक प्रत्याशी को वोट देने के एवज में रिश्वत लेने का आरोप है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने फैसले में कहा है कि रिश्वत लेकर सदन में वोट देने या सवाल पूछने पर सांसदों या विधायकों को विशेषाधिकार के तहत मुकदमे से छूट नहीं मिलेगी। यह फैसला सात न्यायाधीशों के कांस्टीट्यूशन बेंच का है, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ए. एस. बोपन्ना, एम. एम. सुंदरेश, पी. एस. नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपना ही 25 साल पुराना फैसला पलटा है। 1998 में जस्टिस PV नरसिम्हा ने जो फैसला सुनाया था, उसमें सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे से छूट दी गई थी। पांच जजों की कांस्टीट्यूशन बेंच ने तीन-दो के बहुमत से तय किया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
इसी फैसले के बाद शिबू सोरेन और उनकी पार्टी झामुमो के तीन अन्य तत्कालीन सांसद शैलेंद्र महतो, सूरज मंडल और साइमन मरांडी तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए रिश्वत लेकर वोट देने के मुकदमे से बरी हो गए थे। अब, सोमवार को Supreme Court द्वारा अपना ही फैसला पलटने के बाद रिश्वतखोरी मामले में शिबू सोरेन, शैलेंद्र महतो और सूरज मंडल पर नए सिरे से मुकदमा शुरू हो सकता है। इसी मामले में आरोपी रहे साइमन मरांडी का कुछ साल पहले निधन हो चुका है।
दरअसल, 1998 के फैसले के बाद यह चैप्टर क्लोज हो गया था। सुप्रीम कोर्ट में दोबारा 2019 में मामला तब खुला, जब इसी फैसले का हवाला देते हुए झामुमो विधायक सीता सोरेन ने 2012 के राज्यसभा हॉर्स ट्रेडिंग मामले में अपने खिलाफ चल रहे सीबीआई के मुकदमे में राहत की गुहार लगाई। उनका यह दांव उल्टा पड़ गया।
2012 में झारखंड में राज्यसभा का चुनाव हुआ था। इसमें झामुमो की विधायक सीता सोरेन पर आरोप लगा कि उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी आरके अग्रवाल को वोट देने के एवज में डेढ़ करोड़ रुपये लिए। आरोप है कि अग्रवाल से यह पैसा सीता सोरेन के पिता बी. माझी ने लिया था। इस मामले की सीबीआई जांच हुई। जांच के बाद सीता सोरेन के खिलाफ चार्जशीट फाइल की गई।
सीता सोरेन ने सीबीआई की ओर से शुरू की गई आपराधिक मुकदमे की कार्रवाई को रद्द करने के लिए झारखंड हाईकोर्ट में याचिका लगाई। हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। Supreme Court में सुनवाई के दौरान सीता सोरेन की ओर से 1998 के फैसले का हवाला दिया गया और विशेषाधिकार के तहत मुकदमे से छूट की मांग की गई।
सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने इस फैसले पर दोबारा विचार का फैसला करते हुए कहा कि क्या किसी सांसद या विधायक को संसद या विधानसभा में बोलने या वोट के बदले नोट लेने की छूट है? क्या वह ऐसा करके आपराधिक मुकदमे से बचने का दावा कर सकता है?
बहरहाल, अब सोमवार को Supreme Court के सात जजों की कांस्टीट्यूशन बेंच के फैसले के साथ इन सवालों के जवाब मिल गए हैं और इसके साथ ही एक नई नजीर कायम हो गई है।