नई दिल्ली: Supreme Court (सुप्रीम कोर्ट) ने ताजमहल (Tajmahal) के इतिहास का अध्ययन करने के निर्देश देने संबंधी याचिका खारिज कर दी है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने याचिका को पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन (Publicity Interest Litigation) करार दिया।
पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Ilahabad High Court) के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसने मार्च 2022 में याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया था।
एक तथ्य खोज समिति के गठन की मांग
याचिकाकर्ता ने ताजमहल (Tajmahal) के वास्तविक इतिहास (History) का अध्ययन करने और विवाद को शांत करने और इसके इतिहास को स्पष्ट करने के लिए एक तथ्य खोज समिति (Fact Finnding Committee) के गठन की मांग की।
याचिकाकर्ता डॉ रजनीश सिंह ने कहा कि ताजमहल (Tajmahal) का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां (Mughal Emperor Shah Jahan) ने अपनी पत्नी मुमताज़ महल (Mumtaz Mahal) के लिए 1631 से 1653 तक 22 वर्षों की अवधि में किया था, लेकिन इसे साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण (Scientific Evidence) नहीं है।
याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 12 मई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया, जिसमें इस आधार पर उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी कि मुद्दे न्यायिक रूप से निर्धारित नहीं थे।
ताजमहल में सीलबंद 22 कमरों को अध्ययन और निरीक्षण के लिए खोलने की मांग
अधिवक्ता समीर श्रीवास्तव के माध्यम से दायर याचिका के अनुसार, NCERT ने उन्हें एक RTI में उत्तर दिया कि शाहजहां द्वारा ताजमहल के निर्माण के संबंध में कोई प्राथमिक स्रोत उपलब्ध नहीं था।
याचिकाकर्ता ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में एक और आरटीआई दायर की, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता ने ताजमहल में सीलबंद (Sealed) 22 कमरों को अध्ययन और निरीक्षण के लिए खोलने के निर्देश देने की मांग की थी।
उन्होंने प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों और पुरातत्व स्थलों और अवशेष (राष्ट्रीय महत्व की घोषणा) अधिनियम, 1951 के तहत मुगल आक्रमणकारियों द्वारा ऐतिहासिक स्मारकों (Historical Monuments) के रूप में निर्मित स्मारकों की घोषणा को भी चुनौती दी थी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के समक्ष दायर एसएलपी में याचिकाकर्ता ने कहा कि वह केवल अपनी पहली प्रार्थना पर जोर दे रहा है-ताजमहल के वास्तविक इतिहास का अध्ययन करने के लिए तथ्य खोज समिति।