नई दिल्ली: समाज में किसी की भी भावना को ठेस पहुंचाने के इरादे से दिया गया हेट स्पीच यानी नफरती भाषण Indian Constitution को चुनौती देता है। समाज के तमाम बुद्धिजीवी इसे लेकर अपनी चिंता जाहिर करते रहते हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नफरती भाषण (हेट स्पीच) देने वाले अराजक तत्वों (Fringe Element) पर सख्त आपत्ति जताई है।
कोर्ट ने सवाल किया कि लोग क्यों खुद को काबू में नहीं रखते। इसके साथ ही कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री (Former Prime Minister) जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों का भी जिक्र किया।
कहा कि उनके भाषणों को सुनने दूर-दराज के इलाकों से लोग इकट्ठा होते थे।
जस्टिस केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने इस बात पर हैरानी जताते हुए कहा कि अदालतें कितने लोगों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू कर सकती हैं।
पीठ ने नफरत भरे भाषण देने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज (FIR Lodged) करने में विफल रहने के लिए विभिन्न राज्य प्राधिकरणों के खिलाफ एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त बातें कहीं।
राजनीति में धर्म के उपयोग को करें बंद
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सवाल किया कि भारत के लोग अन्य नागरिकों या समुदायों को अपमानित नहीं करने का संकल्प क्यों नहीं ले सकते।
दूसरों को बदनाम करने के लिए हर रोज ऐसे तत्व TV और सार्वजनिक मंचों पर बयान दे रहे हैं।
जिस क्षण राजनीति और धर्म अलग हो जाएंगे और नेता राजनीति में धर्म का उपयोग बंद कर देंगे, नफरत फैलाने वाले भाषण समाप्त हो जाएंगे।
सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) तुषार मेहता ने एक व्यक्ति की ओर से एक विशेष समुदाय के खिलाफ केरल में दिए गए अपमानजनक भाषण (Abusive Speech) की ओर भी कोर्ट का ध्यान आकृष्ट किया।
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला ने देश में नफरत भरे भाषणों की घटनाओं को चुनिंदा रूप से इंगित किया है।