Supreme Court: गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने स्पष्ट किया है कि निचली अदालतों के स्थगन आदेश अपने आप रद्द नहीं हो सकते हैं। कोर्ट ने व्यवस्था दी कि दीवानी और आपराधिक मामलों में निचली अदालत या उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये स्थगन आदेश छह माह के बाद अपने आप रद्द नहीं हो सकते।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ (Judge D.Y. Chandrachur) की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ 2018 के अपने उस फैसले से सहमत नहीं हुई, जिसमें कहा गया था कि निचली अदालतों के स्थगन आदेश अपने आप रद्द हो जाने चाहिए, जब तक कि उसे विशेष रूप से बढ़ाया न जाए।
फैसले में इस विषय पर दिशानिर्देश जारी करते हुए यह भी कहा गया है कि संवैधानिक अदालतों, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को मामलों के निपटारे के लिए समयसीमा तय करने से बचना चाहिए और ऐसा केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जा सकता है। इसके लिए पीठ ने दो अलग-अलग, लेकिन सहमति वाले फैसले सुनाये।
न्यायमूर्ति ए.एस. ओका (Justice A.S. Oka) ने कहा कि संवैधानिक अदालतों को मामलों का फैसला करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जमीनी स्तर के मुद्दे केवल संबंधित अदालतों को ही पता होते हैं और ऐसे आदेश केवल असाधारण परिस्थितियों में ही पारित किए जा सकते हैं।
न्यायामूर्ति ओका ने खुद की ओर से तथा न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के लिए फैसला लिखा। उन्होंने कहा कि स्थगन आदेश अपने आप रद्द नहीं हो सकते। वहीं न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने मामले में एक अलग, लेकिन सहमति वाला फैसला लिखा। जबकि कोर्ट ने दलील सुनने के बाद मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।