Policy Change Cases: सुप्रीम कोर्ट ने नाभा पावर लिमिटेड की याचिका (Nabha Power Limited’s petition) को खारिज करते हुए अपने एक अहम फैसले में कहा कि सरकार द्वारा नीति में बदलाव की घोषणा के लिए जारी की प्रेस विज्ञप्ति को कानून के रूप में नहीं माना जा सकता।
इस बयान के आधार पर किसी को कानूनी लाभ नहीं दिया जा सकता, जब तक कि इसे अधिसूचना द्वारा औपचारिक रूप से लागू न किया जाए।
जस्टिस बी.आर. गवई, प्रशांत कुमार मिश्रा और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि प्रेस विज्ञप्ति केवल एक सरकारी वादा होती है, न कि तत्काल कानूनी बदलाव।
वास्तविक अधिसूचनाएं बाद में 11 और 14 दिसंबर 2009 को जारी हुईं
कोर्ट ने नाभा पावर लिमिटेड (Nabha Power Limited) की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कंपनी ने मेगा पावर परियोजनाओं पर सीमा शुल्क छूट के लिए प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर लाभ मांगने का दावा किया था।
कंपनी ने तर्क दिया कि 1 अक्टूबर 2009 की प्रेस विज्ञप्ति से ही नई कानूनी व्यवस्था प्रभावी मानी जानी चाहिए, जबकि वास्तविक अधिसूचनाएं बाद में 11 और 14 दिसंबर 2009 को जारी हुईं।
कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि प्रेस विज्ञप्ति कैबिनेट (Press Release Cabinet) के फैसले का केवल एक सारांश है, जो जनता को नीति में संभावित बदलाव की सूचना देने के लिए होता है।
इसका मतलब यह नहीं है कि कानून में अपने आप बदलाव हो गया। पीठ ने एक पुराने फैसले का भी हवाला देते हुए कहा कि नीति में बदलाव के लिए वह तारीख ही मान्य होगी जिस दिन औपचारिक कार्यालय ज्ञापन या अधिसूचना जारी होती है।