नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मराठा समुदाय को आरक्षण (Reservation For Maratha Community) देने के महाराष्ट्र के कानून को असंवैधानिक घोषित करने के अपने फैसले की फिर से समीक्षा करने से इनकार कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसके 2021 के फैसले में कोई गलती नहीं थी। एक सर्वसम्मत फैसले में पांच-जजों की संविधान पीठ ने कई आधारों पर 5 मई, 2021 को सामाजिक और शैक्षिक (Social and Educational) रूप से पिछड़े वर्गों के लिए महाराष्ट्र राज्य आरक्षण अधिनियम को खारिज कर दिया था.
जिसमें एक आधार 50 फीसदी कोटा नियम का उल्लंघन भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मराठा समुदाय सामाजिक और शैक्षिक (Maratha Community Social and Educational) रूप से पिछड़ा नहीं है और उसे आरक्षण के दायरे में नहीं लाया जा सकता है।
पीठ ने कहा…
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसके बाद महाराष्ट्र सरकार और अन्य प्रभावित पक्षों ने इस फैसले की समीक्षा की मांग की थी, जबकि अपने आदेश में जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम (Ramasubramaniam) की पीठ ने मराठा आरक्षण को रद्द करने के फैसले की समीक्षा के लिए दायर पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं को खारिज कर दिया।
पीठ ने कहा कि फैसले पर पुनर्विचार की मांग करने वाली समीक्षा याचिकाओं, चुनौती के लिए रखे गए फैसले और उसके साथ संलग्न कागजातों को ध्यान से देखने के बाद हम संतुष्ट हैं कि फैसले में कोई गलती नहीं है।
CM शिंदे ने कहा कि…
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार ने इस मुद्दे पर एक तत्काल बैठक की। राज्य सरकार ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट में एक क्यूरेटिव पिटीशन (Curative Petition) दायर करेगी.
राज्य सरकार ने यह भी घोषणा की कि वह मराठा समुदाय के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को साबित करने के लिए एक विस्तृत सर्वेक्षण करने के लिए एक और आयोग का गठन करेगी। CM शिंदे ने कहा कि :हम मजबूती से मराठा समुदाय (Maratha community) के साथ हैं और हम कोटा बहाल करने के लिए पुख्ता उपाय करने की कोशिश करेंगे।