नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को मुसलमानों के खिलाफ, खासकर “गोरक्षकों द्वारा की जाने वाली” लिंचिंग और भीड़ हिंसा के मामलों (Cases of Lynching and Mob Violence) में चिंताजनक वृद्धि के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (National Federation of Indian Women) द्वारा दायर याचिका पर केंद्र और हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, ओडिशा और महाराष्ट्र सरकारों को नोटिस जारी किया है।
याचिकाकर्ता संगठन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने आग्रह किया, “यह एक बहुत ही गंभीर मामला है।”
उन्होंने कहा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों से संपर्क करने से स्थिति का समाधान नहीं होगा और शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
अधिवक्ता सुमिता हजारिका के माध्यम से दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित निर्देशों के अनुसार लिंचिंग और भीड़ हिंसा के मामलों (Cases of Lynching and Mob Violence) में तत्काल कार्रवाई करने के लिए संबंधित राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को निर्देश देने की मांग की गई है।
FIR दर्ज करने की न्यूनतम कार्रवाई ही
इसमें अन्य बातों के अलावा हाल की एक घटना का जिक्र किया गया है, जिसमें 28 जून को बिहार के सारण जिले में गोमांस ले जाने के संदेह में जहरुद्दीन नाम के 55 वर्षीय ट्रक ड्राइवर को कथित तौर पर भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था।
याचिका में अनुरोध किया गया है कि अदालत द्वारा न्यूनतम एक समान मुआवजा निर्धारित किया जाए जो अधिकारियों द्वारा निर्धारित राशि के अतिरिक्त पीड़ितों या उनके परिवारों को दिया जाना चाहिए।
इसमें आरोप लगाया गया, “ज्यादातर मामलों में केवल FIR दर्ज करने की न्यूनतम कार्रवाई ही अधिकारियों द्वारा की जाती है, जो किसी भी वास्तविक कार्रवाई की शुरुआत की तुलना में एक औपचारिकता अधिक लगती है।”
याचिका में तर्क दिया गया
याचिका में कहा गया है कि लिंचिंग और भीड़ हिंसा को झूठे प्रचार के माध्यम से अल्पसंख्यक समुदायों के बहिष्कार की सामान्य कहानी के परिणाम के रूप में देखा जाना चाहिए, जो सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाषणों के साथ-साथ मीडिया चैनल, समाचार चैनल और फ़िल्मों के माध्यम से फैलाया जा रहा है।
याचिका में कहा गया है कि राज्य का “अत्यंत ईमानदारी और सच्ची प्रतिबद्धता के साथ अपने नागरिकों को अनियंत्रित तत्वों और सुनियोजित लिंचिंग और सतर्कता के अपराधियों से बचाने का पवित्र कर्तव्य है”।
याचिका में तर्क दिया गया है, “सभी व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करने के राज्य के सकारात्मक कर्तव्य और एक धर्मनिरपेक्ष, बहुलवादी और बहुसंस्कृतिवादी सामाजिक व्यवस्था (Social System) को बढ़ावा देने की राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी को इस न्यायालय ने कई निर्णयों में मान्यता दी है।”