नई दिल्ली: विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) से ठीक पहले कर्नाटक (Karnataka) में 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण (Muslim Reservation) खत्म किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार (13 अप्रैल) को अहम टिप्पणी की।
इस बयान से कर्नाटक की बसवराज बोम्मई (Basavaraj Bommai) सरकार को झटका लग सकता है। Supreme Court ने कहा कि राज्य सरकार का फैसला बिल्कुल गलत धारणा पर आधारित है।
शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने कहा, ”वोक्कालिगा व लिंगायत के लिए दो-दो प्रतिशत आरक्षण (Reservation) बढ़ाने का व मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत OBC Reservation खत्म करने का कर्नाटक का फैसला प्रथम दृष्टया त्रुटिपूर्ण है।”
18 अप्रैल को होगी पूरे मामले की अगली सुनवाई
Karnataka की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि अगली सुनवाई (Next Hearing) तक नई नीति के आधार पर कोई भी दाखिला या नौकरी में भर्ती नहीं की जाएगी।
कोर्ट ने मामले में बोम्मई सरकार को नोटिस (Notice) भेजा है। वहीं इस दौरान वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों (Lingayat Communities) के सदस्यों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने कहा कि उन्हें याचिकाओं पर अपना जवाब देने की अनुमति दिए बिना कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए। पूरे मामले की अगली सुनवाई मंगलवार (18 अप्रैल) को होगी।
क्या है मामला?
कर्नाटक सरकार ने हाल ही में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के मुसलमानों के लिए चार फीसदी कोटा (Quota) समाप्त करते हुए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों (Educational Institutions) में आरक्षण की दो नयी श्रेणी की घोषणा की थी।
OBC मुसलमानों के चार फीसदी कोटे को वोक्कलिगा और लिंगायत समुदायों के बीच बांट दिया गया है। यही नहीं, आरक्षण (Reservation) के लिए पात्र मुसलमानों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (Weaker Sections) के तहत वर्गीकृत कर दिया गया है।
राज्य सरकार के फैसले के बाद अब यहां आरक्षण की सीमा करीब 57 फीसदी हो गई है। बोम्मई सरकार के इस फैसले को ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी गई थी।