Electoral Bond: इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) की सच्चाई को सामने लाने के मामले में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (SBI) के तर्क से इनकार करते हुए Supreme Court ने उसकी याचिका खारिज कर दी है। सारा डेटा कल शाम तक देने का आदेश दे दिया है।
Supreme Court ने आदेश दिया है कि SBI को कल शाम तक अपना सारा डेटा सार्वजनिक करते हुए चुनाव आयोग को सौंपना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए 30 जून तक की मोहलत मांगने से जुड़ी SBI की याचिका पर सोमवार को सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान Chief Justice DY Chandrachud ने SBI से अनेक सवाल किए और कहा कि हमारे आदेश के बाद 26 दिनों तक आपने क्या किया? इसकी जानकारी आपको अपनी याचिका में देनी चाहिए थी। यह गंभीर मामला है। संविधान पीठ का यह आदेश है।
आपको कोर्ट के आदेश के मुताबिक कार्य करना होगा। आपको चुनाव आयोग के साथ जानकारी साझा करना होगा।
एसबीआई की याचिका पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पांच जज वाली बेंच ने आज 11 मार्च को सुनवाई की है।
अदालत में SBI की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने दलील दी कि Electoral Bond खरीदने की तारीख और खरीदने वाले का नाम एक साथ उपलब्ध नहीं है, उसे कोड किया गया है और उसे डिकोड करने में समय लगेगा। इस दलील पर Supreme Court ने आपत्ति जताते हुए कई सवाल किए और साथ ही कल मंगलवार शाम तक जानकारी चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश दे दिया।
अदालत ने कहा कि हमने तो अपने फैसले में एक सीधी जानकारी देने को कहा था, जिसका पालन एसबीआई को करना चाहिए।
इस पर SBI का जवाब था कि उसके पास पूरी जानकारी है, किसने खरीदा है, किस राजनीतिक दल को गया है। इसके साथ ही एसबीआई के वकील ने तर्क देते हुए कहा कार्ट से कहा कि किसने बॉन्ड खरीदा यह बताना आसान है, लेकिन बॉन्ड नंबर के साथ नाम बताने में तो समय लगेगा।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि हमारे फैसले के आलोक में अब तक आपने क्या किया है, इसकी पूरी जानकारी हमें चाहिए। इस पर जब SBI ने कहा कि इसे लेकर एक डिटेल हलफनामा दायर करेंगे। तब Supreme Court ने कहा कि आखिर पिछले 26 दिनों में आपने क्या किया है? यह बताएं।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ कहा कि आदेश के मुताबिक कार्य करना होगा और आपको जानकारी चुनाव आयोग (ECI) के साथ साझा करनी होगी। यह मामला बेहद गंभीर है और संविधान पीठ का आदेश है।