नई दिल्ली: ईडब्ल्यूएस आरक्षण (EWS Reservation) को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अगली सुनवाई 20 सितंबर को करेगा।
आज सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कहा कि EWS आरक्षण बराबरी के संवैधानिक मूल्य का उल्लंघन करता है। संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की कभी चर्चा नहीं की गई है।
EWS के समर्थन में दलील देनेवालों के मुताबिक ये आरक्षण काफी समय से अपेक्षित था और इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील पी विल्सन ने कहा कि इस संशोधन के जरिये बराबरी की मूल भावना का उल्लंघन किया गया है। संविधान में बराबरी के लिए आर्थिक आधार कभी नहीं बनाया गया है।
इसलिए इस संशोधन को निरस्त किया जाना चाहिए। वरिष्ठ वकील Dr. केएस चौहान ने कहा कि केशवानंद भारती के फैसले में सुप्रीम कोर्ट (SC) ने साफ कहा कि आप संविधान की मूल भावना को नहीं बदल सकते हैं।
ये वैसे ही है जैसे महिलाओं को आरक्षण इसलिए दिया जाता है क्योंकि ये माना जाता है कि महिलाएं पुरुषों से कमतर हैं। चौहान ने कहा कि अगर समाज में आर्थिक आधार पर गैरबराबरी हो तो EWS ठीक है लेकिन यहां तो सामाजिक स्थिति के आधार पर गैरबराबरी है।
शिक्षा के अधिकार कानून में EWS का जिक्र किया गया है
सुनवाई के दौरान यूथ फॉर इक्वलिटी (Youth For Equality) की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि EWS बहुप्रतिक्षित था और इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि EWS बाहरी विचार नहीं है। शिक्षा के अधिकार कानून में EWS का जिक्र किया गया है। उन्होंने कहा कि पचास फीसदी आरक्षण की सीमा ही संविधान की मूल भावना है।
प्रख्यात अकादमिशियन प्रोफेसर Dr. मोहन गोपाल ने 13 सितंबर को EWS आरक्षण का विरोध करते हुए कहा था कि यह आरक्षण के मतलब को ही उलट देगा।
उन्होंने कहा था कि आरक्षण सामाजिक और पिछड़े वर्ग के आर्थिक उत्थान के लिए है लेकिन EWS में उन वर्गों को बाहर कर दिया गया है।
प्रोफेसर गोपाल ने कहा था कि EWS आरक्षण संविधान के समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन और ईडब्ल्यू आरक्षण के लिए लाया गया 103वां संशोधन संविधान पर हमला है।
सरकार को आर्थिक आधार पर आरक्षण की शक्ति दी
Court ने 8 सितंबर को इस मामले की सुनवाई के लिए जो बिंदु तय किए थे। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने कहा था कि वो ये विचार करेगा कि क्या संविधान में 103वां संशोधन मूल ढांचे के विरुद्ध है जिसने सरकार को आर्थिक आधार पर आरक्षण की शक्ति दी।
कोर्ट यह भी तय करेगा कि क्या इस संशोधन ने गैर सहायता प्राप्त निजी संस्थान में दाखिले के नियम बनाने की शक्ति दी। इसके अलावा यह कि क्या 103वें संशोधन के जरिए ओबीसी, एससी-एसटी (OBC, SC-ST) को शामिल नहीं कर संविधान की मूल भावना का उल्लंघन किया गया।
चीफ जस्टिस यूयू ललित के अलावा इस संविधान बेंच ने जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट, जस्टिस बेला में त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल हैं।
याचिका में 2019 में EWS आरक्षण कानून को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने इस मामले में चार वकीलों को नोडल वकील नियुक्त किया है जो EWS आरक्षण और मुस्लिमों को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग में आरक्षण देने वाली याचिकाओं में समान दलीलों पर गौर करेगी।
Court इन दोनों मामलों पर सुनवाई करने के बाद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में सिखों को अल्पसंख्यक आरक्षण देने के मामले पर भी विचार करेगी।
इसके अलावा संविधान बेंच SC की अपीलीय और संविधान बेंचों में विभाजन करने और सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय बेंच बनाने की मांग पर भी सुनवाई करेगी।
संविधान बेंच ने ये साफ किया कि सबसे पहले वो आरक्षण के मसले की सुनवाई करेगी क्योंकि इनमें कई मसले एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।