नई दिल्ली: Supreme Court ने मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) से कहा है कि एक सेशन जज से न्यायिक जिम्मेदारियों को वापस लिया जाएं और उन्हें अपनी स्किल में सुधार करने के लिए न्यायिक अकादमी (Judicial Academy) भेजा जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह कार्रवाई इसलिए की है क्योंकि जज एक सामान्य मामलों में आरोपियों को जमानत नहीं दे रहे थे।
इस तरह के कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने भी उदार रुख अपनाया था और आरोपियों को आसानी से जमानत दे दी थी।
बताते चलें शीर्ष न्यायालय ने 21 मार्च को चेतावनी दी थी कि अगर कोई बार-बार ऐसे फैसले सुनाता है तो उससे न्यायिक काम की जिम्मेदारी ले ली जाएगी और उसे न्यायिक अकादम भेज दिया जाएगा।
2 मामले रखे गए थे कोर्ट के सामने
मिली जानकारी के अनुसार जस्टिस संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul) और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह (Justice Ahsanuddin Amanullah) की बेंच को बताया गया था कि जज निर्देशों का पलन नहीं कर रहे हैं।
न्याय मित्र के तौर पर कोर्ट का सहयोग कर रहे ऐडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने दो ऐसे मामले कोर्ट के सामने रखे थे जिसमें जमानत के आदेश नहीं दिए गए थे।
एक केस शादी को लेकर विवाद का था। लखनऊ (Lucknow) के सेशन जज ने आरोपी और उसकी मां की याचिका पर उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था। जब कि उनकी गिरफ्तारी भी नहीं हुई थी।
फैसले का नहीं किया जा रहा है पालन
दूसरे केस में एक आरोपी कैंसर पीड़ित (Cancer Patient) था और गाजियाबाद की CBI कोर्ट ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था।
इन केसों पर निराशा जताते हुए बेंच ने कहा, ऐसे बहुत सारे आदेश पारित किए जाते हैं जो कि हमारे आदेशों से मेल नहीं खाते।
गुस्सा जाहिर करते हुए बेंच ने कहा कि कोर्ट में कानून के आधार पर फैसले सुनाए जाते हैं और उसका पालन करना जरूरी है।
उत्तर प्रदेश (UP) में हालत बहुत खतरनाक है। 10 महीने पहले फैसला देने के बाद भी इसका पालन नहीं किया जा रहा है।
आदेश के बाद भी लखनऊ कोर्ट ने किया नियम का उल्लंघन
बेंच ने कहा, 21 मार्च को हमारे आदेश के बाद भी लखनऊ कोर्ट (Lucknow Court) ने इसका उल्लंघन किया।
हमने इस आदेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट के संज्ञान में भी डाला।
हाई कोर्ट को जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए और जजों की न्यायिक कुशलता को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए ।
लोगों को फालतू में गिरफ्तार कर लिया जाता है
उन्होंने कहा, लोकतंत्र में पुलिसिया शासन की जरूरत नहीं है जहां कि लोगों को फालतू में गिरफ्तार कर लिया जाए।
कोर्ट ने निर्देश दिए थे कि जहां कस्टडी की जरूरत ना हो ऐसे 7 साल से कम सजा का प्रावधान वाले केसों में गिरफ्तारी की जरूरत नहीं है।
अगर कोई आरोपी गिरफ्तार नहीं किया गया है और वह जांच में सहयोग कर राह है तो केवल चार्जशीट फाइल होने के बाद ही उसे हिरासत में लिया जाना चाहिए।
जुलाई में कोर्ट अपने एक फैसले में कह चुका है, ट्रायल कोर्ट की जिम्मेदारी है कि संविधान की गरिमा को बनाए रखें।