Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बिना सुनवाई के लंबे समय तक किसी आरोपी को जेल में रखने को गलत ठहराते हुए कहा कि यह बिना सुनवाई के सजा देने जैसा है, जो स्वीकार्य नहीं है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने मादक पदार्थ (NDPS) से जुड़े एक मामले में गिरफ्तार एक आरोपी को जमानत दे दी।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता पिछले छह वर्षों से जेल में है, लेकिन 2019 में दर्ज इस मामले में अभी तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है।
सह-आरोपी को पहले दी गई थी जमानत
सरकारी वकील ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि मामले में सह-आरोपी को पहले जमानत दी गई थी, लेकिन वह अदालती कार्यवाही में शामिल नहीं हो रहा है।
इस पर पीठ ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई बार कहा है कि बिना सुनवाई के लंबे समय तक जेल में रखना उचित नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सह-आरोपी के पेश न होने के आधार पर याचिकाकर्ता को दंडित नहीं किया जा सकता।
हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील
सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के मार्च 2024 के उस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता की अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। पीठ ने कहा कि राज्य सह-आरोपी की जमानत रद्द करने के लिए कदम उठा सकता है, लेकिन याचिकाकर्ता को केवल इस आधार पर जेल में नहीं रखा जा सकता।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को ग्रेटर नोएडा में दर्ज मामले में निचली अदालत की शर्तों के साथ जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
क्या है मामला
याचिकाकर्ता को जनवरी 2019 में स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। उसने हाई कोर्ट में दावा किया था कि उसे उस स्थान से गिरफ्तार नहीं किया गया, जहां से कथित तौर पर 150 किलोग्राम गांजा बरामद हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न केवल याचिकाकर्ता को राहत दी, बल्कि बिना सुनवाई के लंबी हिरासत के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी दिया।