बलरामपुर: सुशील कुमार पुणे मुंबई में एक ब्रांडेड जूता कंपनी में 16 साल से प्रतिमाह 16 हजार रुपये पगार पर नौकरी कर रहा था। महामारी में काम बंद हुआ तो नौकरी जाने का डर सताने लगा।
लॉकडाउन में मुंबई से घर लौटते समय बहुत से लोगों को नंगे पांव देखा तो सोचा कि क्यों न ऐसा रोजगार करें जो लोगों को सस्ते में चप्पल दिला दे।
हुनर तो पहले से था, बस मशीन की जरूरत थी। ऐसे में, ठान लिया कि अब वह खुद की फैक्ट्री गांव में डालेगा। फैक्ट्री खोलने के लिए पूंजी कम पड़ रही थी।
इस बीच उसकी मुलाकात राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के पचपेड़वा ब्लॉक मिशन मैनेजर विष्णु प्रताप मौर्या से हुई।
उन्होंने स्वयं सहायता समूह से जोड़कर 50 हजार रुपये का ऋण दिला दिया। इसके बाद तो उसके सपनों को पंख लग गए। आगरा से जुलाई में मशीन ली और प्रतिदिन 150 चप्पल तैयार करने लगा।
सुशील ने चप्पल बनाने के लिए घर पर चार मशीनें लगाई हैं। उसने बताया कि एक मशीन शीट काटती है। दूसरी फिनीशिंग करती है। तीसरी से ड्रिल व चौथे से पट्टा पहनाया जाता है।
प्रतिदिन 150 सौ जोड़ी चप्पल तैयार हो जाती हैं। 50 रुपये प्रति जोड़ी चप्पल में उसे 20 रुपये मुनाफा मिल जाता है। ऐसे में, हर माह वह 20-25 हजार रुपये कमा लेता है।
कमाई बढ़ी तो उसने गाड़ी खरीदी। उसकी सूर्या ब्रांड चप्पल जरवा, बालापुर, तुलसीपुर, भोजपुर कस्बों समेत नेपाल तक बिक रही है। पचपेड़वा ब्लॉक के सामने अब वह अपना शोरूम बनाने जा रहा है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के जिला अखिलेश मौर्य ने बताया कि सुशील के हुनर व लगन ने उसे कामयाब बनाया है, इससे हर किसी को सीख लेनी चाहिए।
सुशील जैसे हर होनहार व स्वरोजगार करने की चाह रखने वाले हर व्यक्ति को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन मदद करने को हमेशा तत्पर है।