COVID काल के बाद वैश्विक कर्ज में हुई भयानक वृद्धि, GDP का 92%…

2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद के विभिन्न ऋण चक्रों के विश्लेषण से पता चलता है कि COVID के बाद ऋण के स्तर में तेजी से वृद्धि के कारण ऋण संकट में लगातार वृद्धि हुई है, जिससे कम आय वाले देशों में Default जोखिम बढ़ गया है।

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Increase Global Debt : क्रेडिट रेटिंग एजेंसी केयरएज रेटिंग (Credit Rating Agency Care EDge Rating) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 के बाद वैश्विक कर्ज में वृद्धि एक बड़ी चिंता का विषय है। यह 2022 में 92 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जो वैश्विक GDP का लगभग 92 प्रतिशत है।

2020 की शुरुआत से अब तक लगभग 19 ट्रिलियन अमेरिकी Dollar या वैश्विक सार्वजनिक ऋण का लगभग 20 प्रतिशत ऋण जमा हो चुका है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष  (Monetary Fund) के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक ऋण साल 2028 तक 132 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।

CareAge Ratings की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि कोविड महामारी के बाद वैश्विक ऋण में वृद्धि एक बड़ी चिंता के रूप में उभर कर सामने आई है।

कई उन्नत अर्थव्यवस्थाएं लो इंटरेस्ट रेट का फायदा उठा रही

2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद के विभिन्न ऋण चक्रों के विश्लेषण से पता चलता है कि COVID के बाद ऋण के स्तर में तेजी से वृद्धि के कारण ऋण संकट में लगातार वृद्धि हुई है, जिससे कम आय वाले देशों में Default जोखिम बढ़ गया है।

केयरएज रेटिंग (CareAge Ratings ) ग्रुप के प्रबंध निदेशक और CEO मेहुल पंड्या ने कहा, “महामारी के बाद एडवांस्ड और EMDE में ऋण स्तर में तेजी से वृद्धि हुई है। कई उन्नत अर्थव्यवस्थाएं लो इंटरेस्ट रेट (Low Interest Rate) का फायदा उठा रही हैं। लेकिन अब, ब्याज दरें लंबी अवधि तक ऊंची रहने के साथ, उन्हें बढ़ती ऋण सेवा लागत का दर्द महसूस होगा।”

केयरएज रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा, “वैश्विक ऋण में हालिया उछाल इसकी तेज वृद्धि और भारी मात्रा दोनों में उल्लेखनीय है। ऋण के स्तर में तेज वृद्धि के साथ, ऋण संकट की मात्रा भी लगातार बढ़ रही है। 2020 के बाद से लगभग 19 अर्थव्यवस्थाएं या तो अपने ऋण दायित्वों पर डिफॉल्ट कर चुकी हैं या उसका पुनर्गठन किया है।

चीन के ऋण में वृद्धि ने भी संकट को बढ़ा दिया है, जिससे ऋण लेने वाले देशों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि ये ऋण अपेक्षाकृत अधिक ब्याज दरों पर आते हैं और इनके नियम और शर्तों में पारदर्शिता नहीं होती है।”