नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने एक अप्रैल से वेतन ढांचे (सैलरी स्ट्रक्चर) में होने वाले बदलाव को फिलहाल टाल दिया है। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि नए श्रम कानून को लेकर कुछ राज्यों की तैयारी अभी अधूरी है।
बता दें कि केंद्र सरकार ने बीते दिनों में 29 श्रम कानूनों को बदल कर चार श्रम कानून बनाए हैं।
इसी के तहत कंपनियों को अपने कर्मचारियों के वेतन ढांचे में कई अहम बदलाव करने हैं।
इस बदलाव को टालने के पीछे की वजह राज्यों की अधूरी तैयारी के साथ वर्तमान हालात भी हैं। कोरोना वायरस महामारी के बीच लोगों को नकदी की जरूरत है।
सूत्रों के अनुसार अभी तक कोई सरकारी अधिसूचना भी जारी नहीं की गई है। वहीं, फ्रेमवर्क भी तैयार नहीं हो पाया है। इन्हीं सब कारणों के चलते इसे फिलहाल स्थगित कर दिया गया है।
बता दें कि श्रम कानूनों में इन बदलावों से कर्मचारी की इन हैंड सैलरी (जितना वेतन मिलता है) कम होती, लेकिन प्रॉविडेंट फंड (पीएफ) की राशि बढ़ जाती।
विशेषज्ञों का मानना है कि नए कानूनों का असर कर्मचारियों के वेतन पर पड़ेगा लेकिन भविष्य के लिए बचत ज्यादा होगी।
बता दें कि कर्मचारी को पीएफ पर हर साल आठ से साढ़े आठ फीसदी की दर से ब्याज मिलता है। वेतन को दो तरह से विभाजित किया जाता है। इसमें एक होती है सीटीसी यानी कॉस्ट टू कंपनी।
वहीं, दूसरी होती है इन हैंड सैलरी या टेक होम सैलरी। आइए जानते हैं कि ये दोनों क्या होते हैं, इनमें क्या अंतर है और नए श्रम कानून इनको किस तरह से प्रभावित करेंगे।
आपके काम के लिए कंपनी जितनी कुल राशि खर्च करती है, उसे सीटीसी कहते हैं।
इसमें आपके बेसिक वेतन के साथ कंपनी की ओर से मिलने वाले विभिन्न भत्ते भी शामिल होते हैं।
आपकी सीटीसी से कुछ पैसा स्वास्थ्य बीमा के लिए कटता है तो कुछ प्रॉविडेंट फंड के लिए। इन्हीं कटौतियों के बाद जितना वेतन आपको मिलता है उसे इन हैंड या टेक होम सैलरी कहते हैं।