प्रयागराज: 34 साल और पांच बड़ी राजनीतिक हत्याएं (Political Assassinations)। जिस माफिया अतीक (Atiq) ने चांद बाबा (Chand Baba) की हत्या के साथ इसकी शुरुआत की थी, उसी की हत्या के साथ इसका अंत भी हो गया।
वर्ष 1995 में जवाहर पंडित हत्याकांड (Jawahar Pandit Murder Case) को छोड़ दें तो हर राजनीतिक हत्या में माफिया अतीक अहमद (Atiq Ahmed) का ही नाम सीधे तौर पर सामने आया।
हर राजनीतिक हत्या में अतीक अहमद का ही नाम
हाईप्रोफाइल हत्याकांडों (High Profile Murders) में हर बार अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया। घटनाओं को भी बेखौफ तरीके से खुलेआम सड़कों (Open Roads) पर अंजाम दिया गया।
1989 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में माफिया अतीक अहमद और उसका जानी दुश्मन सब्जी मंडी क्षेत्र का तत्कालीन सभासद शौक इलाही उर्फ चांद बाबा एक दूसरे को सीधे चुनौती दे रहे थे।
मतगणना से दो दिन पहले रोशनबाग में कबाब पराठा (Kebab Paratha) की एक दुकान में शाम साढ़े सात बजे के आसपास दोनों को आमना-सामना हुआ।
चांद बाबा की हत्या
पहले बहस हुई और फिर ताबड़तोड़ गोलियां (Bullets) और बम चलने लगे। इस घटना में चांद बाबा मारा गया और हत्या का आरोप अतीक अहमद पर लगा।
चांद बाबा गैंग के सदस्य इस्लाम नाटे, जग्गा और अख्तर कालिया बच निकले। बाद में, पुलिस ने एक मुठभेड़ में इस्लाम नाटे को ढेर कर दिया।
इसके बाद अख्तर कालिया की हत्या कर दी गई और फिर मुंबई (Mumbai) भागे जग्गा को वापस इलाहाबाद (Allahabad) लाकर मार दिया गया।
तेजी से आगे बढ़ा अतीक का सियासी कारवां
सभी दुश्मनों के मारे जाने के बाद अतीक का सियासी कारवां (Political Caravan) तेजी से आगे बढ़ चला। वह वर्ष 2004 तक लगातार पांच बार MLA भी चुन लिया गया।
इस बीच वर्ष 1995 में सपा के तत्कालीन MLA जवाहर पंडित को सिविल लाइंस (Civil Lines) की सड़क पर दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया गया।
चांद बाबा के बाद प्रयागराज (Prayagraj) में यह दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक हत्या थी। पहली बार शहर में किसी की हत्या के लिए एके-47 का इस्तेमाल किया गया था।
दिनदहाड़े राजू पाल को गोलियों से भून दिया गया
इस हत्याकांड में कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया और सूरजभान करवरिया (Surajbhan Karwaria) को प्रमुख आरोपी बनाया गया। हत्याकांड में तीनों करवरिया भाइयों और इनके रिश्तेदार रामचंद्र उर्फ कल्लू को उम्रकैद (Life Prison) की सजा हो चुकी है।
इस घटना के ठीक 10 साल बाद माफिया अतीक और अशरफ सुर्खियों में फिर आए, जब 25 जनवरी 2005 को शहर पश्चिमी से BSP के तत्कालीन विधायक राजू पाल को धूमनगंज में दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया गया था। नवंबर 2004 हुए विधानसभा चुनाव में राजू पाल (Rajupal) ने शहर पश्चिमी से अशरफ को हराया था।
2007 के बाद फिर कभी चुनाव नहीं लड़ा अशरफ
अतीक और अशरफ पर हत्या का इल्जाम लगा। बावजूद इसके राजू पाल की हत्या के बाद हुए उप चुनाव में Ashraf ने Raju Pal की पत्नी पूजा पाल को हरा दिया।
2007 में हुए विधानसभा के मुख्य चुनाव में पूजा पाल ने अशरफ को शिकस्त दी। तीनों बार Ashraf ने SP के टिकट से चुनाव (Election) लड़ा। इसके बाद माफिया अतीक तो सियासत की छांव में फलता-फूलता रहा, लेकिन अशरफ 2007 के बाद फिर कभी चुनाव नहीं लड़ा।
उमेश पाल हत्याकांड ने पूरे प्रदेश को हिलाया
राजू पाल हत्याकांड (Raju Pal Murder Case) में जब दोनों जेल चले गए तो लगा कि प्रयागराज में अब सबकुछ ठीक है, लेकिन बीते 24 फरवरी को BJP नेता उमेश पाल हत्याकांड (Umesh Pal Murder Case) ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया।
उमेश की सुरक्षा में तैनात दो सिपाही भी मारे गए। इस घटना के सूत्रधार भी अतीक और अशरफ ही बताए गए। पहली बार अतीक के पांच बेटों में से तीसरे नंबर का बेटा असद भी उमेश पाल पर गोली चलाते हुए CCTV कैमरे में कैद हुआ।
34 साल पुराने इतिहास ने खुद को दोहराया, बस चेहरे बदले हुए थे। 15 अप्रैल की रात करीब 10.37 बजे ताबड़तोड़ गोलियों की गूंज के साथ 34 साल पहले शुरू हुई कहानी अतीक-अशरफ के अंत के साथ खत्म हो गई।